tag:blogger.com,1999:blog-85606103751346805512024-02-19T15:09:05.300-08:00अग्निवीणाThe Fire of thoughts and facts.Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.comBlogger43125tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-1323061734432689922015-02-18T19:12:00.000-08:002015-02-18T19:27:45.244-08:00Women and MediaToday we are dealing with this basic question that is media sensitive enough to cover the women related issue?
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUATC8BHagcMB4kSO4zSISrt3tXKmw7du-t_uFNYDrMVXMvAiQUa1d-ucyGC-iqlDv3-4opKmaLAf7SLj4uZWh6dgWia6Pftk7VQrVWLGSQihVH5W_zu-B-Ey5ZpSNUcDa4ED8d71EFwg/s1600/women_and_the_media.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUATC8BHagcMB4kSO4zSISrt3tXKmw7du-t_uFNYDrMVXMvAiQUa1d-ucyGC-iqlDv3-4opKmaLAf7SLj4uZWh6dgWia6Pftk7VQrVWLGSQihVH5W_zu-B-Ey5ZpSNUcDa4ED8d71EFwg/s320/women_and_the_media.jpg" /></a></div>
Everywhere the potential exists for the media to make a far greater contribution to the advancement of women.
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidLpxt_lGIo68i07-LBVsTJIOGXqYZld74Tztc-0d-aI9Ee1gZbtzKzeQPzdw3cltDwr50PzRlKl7Ln3XOlrxxy14v7mJ9On4Eyo3rq3YuTkWwPIJFsjEPbTFehuy9JK2XZLMz8ZCXT4c/s1600/WIFP+LOGO.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidLpxt_lGIo68i07-LBVsTJIOGXqYZld74Tztc-0d-aI9Ee1gZbtzKzeQPzdw3cltDwr50PzRlKl7Ln3XOlrxxy14v7mJ9On4Eyo3rq3YuTkWwPIJFsjEPbTFehuy9JK2XZLMz8ZCXT4c/s320/WIFP+LOGO.gif" /></a></div>
Now it is fact that the lack of gender sensitivity in the media is evidenced by the failure to eliminate the gender-based stereotyping that can be found in public and private local, national and international media organizations.
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsL2lCGx8FDXZCpCtCh8QSoDN9k0ehMzPM7SYbioJAIuXZwajr2Y08vASXof1BGisYuPW8z1V54bnQT1WD1BcQty3SLHmVlOcYvA-5YPZ8AXtCDaUE7vjs8TmiIjIEoCqzAbD6TJIRLnc/s1600/3.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsL2lCGx8FDXZCpCtCh8QSoDN9k0ehMzPM7SYbioJAIuXZwajr2Y08vASXof1BGisYuPW8z1V54bnQT1WD1BcQty3SLHmVlOcYvA-5YPZ8AXtCDaUE7vjs8TmiIjIEoCqzAbD6TJIRLnc/s320/3.jpg" /></a></div>
The continued projection of negative and degrading images of women in media communications - electronic, print, visual and audio - must be changed.
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9FnHv99IQz2YY8gjLp_hxZTFrtFobby6ZVxGwANL_niOHIqThcLZHRKQ5cNlFZXjk_dVhAHbhUAHkOfktmjjUjDzSJmFtaEtsz1dGDMOzkmx5afKuj1rvzGSwupi5sjeuL3o1oq3YDIo/s1600/4.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9FnHv99IQz2YY8gjLp_hxZTFrtFobby6ZVxGwANL_niOHIqThcLZHRKQ5cNlFZXjk_dVhAHbhUAHkOfktmjjUjDzSJmFtaEtsz1dGDMOzkmx5afKuj1rvzGSwupi5sjeuL3o1oq3YDIo/s320/4.jpg" /></a></div>
The world- wide trend towards consumerism has created a climate in which advertisements and commercial messages often portray women primarily as consumers and target girls and women of all ages inappropriately.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZDEf7xdodAq7psfIIc05WszuvJ78kXtMqswqw2HeIl2VBDc13a7-sle1oxzu1RIQbd898Wtv-NMhBpNGFqrUaw7Hnd3iU3zvn6DqLwX2KNZjIDMACBCxbvYhG_XYe-Rrvpm2y92tL1ps/s1600/5.png" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZDEf7xdodAq7psfIIc05WszuvJ78kXtMqswqw2HeIl2VBDc13a7-sle1oxzu1RIQbd898Wtv-NMhBpNGFqrUaw7Hnd3iU3zvn6DqLwX2KNZjIDMACBCxbvYhG_XYe-Rrvpm2y92tL1ps/s320/5.png" /></a></div>
Women should be empowered by enhancing their skills, knowledge and access to information technology. This will strengthen their ability to combat negative portrayals of women internationally.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifVTkGFl-wvb9Pj6b-gB66acquOg_j2jdCeKo5WX_QfZR7-3FQ0C6kpAV_v6X7lw5JOlX5JeT242e00RBUtgPiC3ecq48Cv5szfuqpoelRdy6DP9XoXahS3Gqh0J9Uq8VC3NvhPxqu6Os/s1600/skill+woment6.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifVTkGFl-wvb9Pj6b-gB66acquOg_j2jdCeKo5WX_QfZR7-3FQ0C6kpAV_v6X7lw5JOlX5JeT242e00RBUtgPiC3ecq48Cv5szfuqpoelRdy6DP9XoXahS3Gqh0J9Uq8VC3NvhPxqu6Os/s320/skill+woment6.jpg" /></a></div>
Women need to be involved in decision-making regarding the development of the new technologies in order to participate fully in their growth and impact.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNxMPHAMo32w5T8jgPgPlpwzVdVO9jMd-0p46IkJpV52ITLKMWKTcY5I3f8qf_ATjOq0h95c2td92NJy_unpHrFXaRCo61OWLvxLJ0clENvBPOA9j__bnVnX0PDfNF_5_hEbIqaoYQIm8/s1600/desicion+meking.png" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNxMPHAMo32w5T8jgPgPlpwzVdVO9jMd-0p46IkJpV52ITLKMWKTcY5I3f8qf_ATjOq0h95c2td92NJy_unpHrFXaRCo61OWLvxLJ0clENvBPOA9j__bnVnX0PDfNF_5_hEbIqaoYQIm8/s320/desicion+meking.png" /></a></div>
In addressing the issue of the mobilization of the media, Governments and other actors should promote an active and visible policy of mainstreaming a gender perspective in policies and programmes.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjX2hzIr9n1ogKPDGm4_U84lRz9sgo8YrdGntIlBjzVMznB6bhIAACSdyVuR1kymDNeMLEb2jqdSKEaf2j_L82MYf19puNC3fNNjv9Zca9x2rRyPMTaDTtCYs9bufLM0kITUhd19xfKTuI/s1600/last.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjX2hzIr9n1ogKPDGm4_U84lRz9sgo8YrdGntIlBjzVMznB6bhIAACSdyVuR1kymDNeMLEb2jqdSKEaf2j_L82MYf19puNC3fNNjv9Zca9x2rRyPMTaDTtCYs9bufLM0kITUhd19xfKTuI/s320/last.jpg" /></a></div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-9828724410205643102014-03-20T07:42:00.003-07:002014-03-20T07:42:22.698-07:00ख़तरनाक है धर्म और राजनीति का घालमेलदंगों की सबसे भयावह परिणती मौत नहीं, बल्कि वो हालात हैं जो किसी के मौत का कारण बनते हैं। मौत और किसी को मारने की हद जाने की भावना का पैदा लेना और उसे उसी क्रूरता से अंजाम देने का कारण बन जाता है किसी के किसी ख़ास धर्म का होना। यानी एक धर्म का व्यक्ति दूसरे को दुशमनी के कारण नहीं मारता बल्कि इसलीए मारता है, क्योंकि वो उसके धर्म का नहीं। घृणा और नफरत की आग बिना किसी तर्क के सबको जलाने को आतुर। देश जब आज़ाद हुआ था तो विदेशों के कई बुद्धिजीवी जी भरकर इस आशंका को पोषित कर रहे थे कि भारतवर्ष अपनी विविधता के जंजाल में उलझकर एक असफल राष्ट्र साबित होगा। भगत सिंह इस आशंका को पहले ही भांपते हुए इशारा करते हैं कि धर्मिक दायरों का संकरापन हिंदुस्तान के विचार को उड़ने के रोक सकता है। वो सवाल मज़हबी कठमुल्लाओं की तरफ उठाते हैं और ज़ोर देते हैं कि भावनाओं की रौं में बह जाना वो भी अपनी स्वीकार्यता और दबदबे की स्थापना की लालच में एक बड़ी खाई का निर्माण कर रहा है।
भारतीय राजनीति में एक नारा पिछले लगभग 9 सालों से हवा में कुछ ज्यादा ही प्रमुखता से इधर-उधर बह रही है, वो है विकास की। विकास विकास और विकास, लेकिन ये कितना सच है। राजनीति में धर्म की घुसपैठ को भगत सिंह सीधे सांप्रदायिकता से जोड़ते हैं, और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि जहां सांप्रदायिकता के तत्व हावी होते हैं वहां साम्राज्यवाद अपने आप आ जाता है। सांप्रदायिकता अपने निजी हित के लिए साम्राज्यवाद का समर्थक होता है, या कहें कि उसकी अगली कड़ी साम्राज्यवाद है। लेकिन क्या आज हमें किसी साम्राज्यवाद का डर है? जी हां, यहीं सवाल आज भगत सिंह को हमारे क़रीब ले आता है। जब जब दक्षिणपंथ और उसकी राजनीति की बात आती है, तब तब साथ में ही पूंजी के अधिकार या कहें पूंजी के वर्चस्व की बात आती है। उदार आर्थिक व्यवस्था अपने आप में विविधता का चेहरा रखता है, लेकिन पर्दे के पीछे पूंजी का खेल होता है। ज्यादा मौके और ज्यादा प्रतिस्पर्धा बस नाम के रह जाते हैं, क्योंकि छोटी मछली बड़ी के आगे टिकती नहीं। पूंजी और पूंजीवादी सत्ता को अपना दास तो काफी पहले ही बना चुका होता है।
भगत सिंह आज से लगभग 80-90 साल पहले दंगों के विशलेषण में स्वराज और आज़ादी की राजनीति की खाल के पीछे झांकते हुए चेताते हैं कि ‘जो नेता हृदय से सबका भला चाहते हैं, ऐसे बहुत ही कम हैं. और साम्प्रदायिकता की ऐसी प्रबल बाढ़ आयी हुई है कि वे भी इसे रोक नहीं पा रहे। ऐसा लग रहा है कि भारत में नेतृत्व का दिवाला पिट गया है’। आज प्रधानमंत्री का एक उम्मीदवार सरे आम दंगों के आरोपियों को बड़े से समारोह में सम्मानित करता है। आरोपी मुजरिम नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन संदेश क्या है? तस्वीर क्या है? बड़ा पेड़ और हिलती धरती और कटते लोग। क्या चमड़ी के पीछे का गूदा एक जैसा नहीं है, क्या दिवाला पिटा नहीं है। भगत सिंह नारा देते हैं ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’। उनका और उनके साथियों का साफ मानना था कि आंदोलन के नारे स्पष्ट और संप्रदायों के दायरों से बाहर होने चाहिए, ख़ासकर ऐसे समाज में जहां धार्मिक और सामाजिक विविधता उसकी शक्ति सामर्थ्य हो। भगत सिंह का मानना था कि उस समय के कांग्रेस में अलग गुटों ने अपने अलग अलग नारे बनाए थे। कोई गुट ‘हर हर महादेव’ करता तो कोई ‘नारा-ए-तकबीर अल्लाह-ओ-अकबर’ या फिर ‘सत्श्रीआकाल’। समस्या यहां नहीं है। समस्या है एक लक्ष्य की प्राप्ति को लेकर चलने वाले समूह की स्पष्टता और एकजुटता। इसीलिए वो कहते हैं ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’।
Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-54065493351183574792010-08-14T22:09:00.000-07:002010-08-14T22:10:26.218-07:00चाहिए रोज़गार का अधिकार !आज़ादी की सालगिरह सबको मुबारक, बेहतर भारत के लिए एक विचार – क्या 100 दिन के ग्रामीण रोज़गार गारंटी, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार और जल्द होने वाले खाद्य सुरक्षा की गारंटी के बाद अब युवाओं के रोज़गार के अधिकार के लिए क़ानून बनना चाहिए ? सारे युवाओं को रोज़गार का अधिकार संविधान दे, न ही तो बेरोज़गारी भत्ता। अगर इस युवा देश में युवाओं को भविष्य को लेकर निश्चिंतता नहीं होगी तो नक्सलवाद भी होगा और अपराध भी...Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-81846136485597309912010-05-15T21:27:00.000-07:002010-05-15T21:39:07.970-07:00न्याय और कुछ नहीं !ये विरोध है, उस अन्याय के ख़िलाफ जो अब बर्दाश्त नहीं।<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYvSHtuoaQppIUoffS7z2lebrXIUN6vhHTSmTROF5zZzFBnm5AChFnhmWmIXhD3bbeov-_AgjdC2fWVssc-kwnLU2GBvnmpBoEBoGL1RTDtKNnHK8_hKHsJrSGm62ba0qyiY8qXqMTbkM/s1600/black+ribban.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 217px; height: 222px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYvSHtuoaQppIUoffS7z2lebrXIUN6vhHTSmTROF5zZzFBnm5AChFnhmWmIXhD3bbeov-_AgjdC2fWVssc-kwnLU2GBvnmpBoEBoGL1RTDtKNnHK8_hKHsJrSGm62ba0qyiY8qXqMTbkM/s320/black+ribban.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5471720218046646226" /></a><br />विरोध उन सामंतों के खिलाफ जो अभी भी हमारी सोच में सांसे ले रहा है।<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilzpPyOU2UNtXkXKDNA8wpadevlIHru3Ko1Nir5JQCF5ElpaqtqmI2Bjz3JnjQmje4VSlWMU9gvDeC8NScSs_TdbanbjCKhE6IXzIrS2dPY2uOk3TV1W4jCYZc45SdU9wL5otizl_Atb0/s1600/close+playcards.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 242px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilzpPyOU2UNtXkXKDNA8wpadevlIHru3Ko1Nir5JQCF5ElpaqtqmI2Bjz3JnjQmje4VSlWMU9gvDeC8NScSs_TdbanbjCKhE6IXzIrS2dPY2uOk3TV1W4jCYZc45SdU9wL5otizl_Atb0/s320/close+playcards.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5471720438964265314" /></a><br />हमारे ज़ुबान बंद हैं, पर सीनों में चित्कार है। <br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwJLmOFZ7DdV5EKEu4tL0KILeuRJnOy36RRO16R86vFMPGRFRI_1xiGdik3eUqyP5D0uRMOGKclHJZ6qh7CLh_dEgFmf70te_KfuxUGBbhyd-ehs7710LDJTVqOw_Xb-vo3Ikhzc0x2NY/s1600/close+march.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 160px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwJLmOFZ7DdV5EKEu4tL0KILeuRJnOy36RRO16R86vFMPGRFRI_1xiGdik3eUqyP5D0uRMOGKclHJZ6qh7CLh_dEgFmf70te_KfuxUGBbhyd-ehs7710LDJTVqOw_Xb-vo3Ikhzc0x2NY/s320/close+march.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5471720926056096514" /></a><br />न्याय मिले जल्दी, क्योंकि देर पहले ही बहुत हो गई है।<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYe1rYgY0wnCvg6VMTGZSEosOS_bg36AFZBZQlx4vfrGTdEh8l96qg3WM7DPqyIysgqAEVK9FD88MS-tOFNaVB-p2jJGxZ1BC-2CMsuMogVKH7jmZhBMx3S2Twkl6NgmeoyG7hKLyCCxU/s1600/close+face.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYe1rYgY0wnCvg6VMTGZSEosOS_bg36AFZBZQlx4vfrGTdEh8l96qg3WM7DPqyIysgqAEVK9FD88MS-tOFNaVB-p2jJGxZ1BC-2CMsuMogVKH7jmZhBMx3S2Twkl6NgmeoyG7hKLyCCxU/s320/close+face.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5471720766763228898" /></a><br />ठेकेदार ठेका ले और दे चुके अपना फैसला।<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBhskkw5t5k4QNS9BBpIBT9tyBIFoUz3bawvg5l4aF_ZxW0wgz40zv7rYsAnl_Okg1-fCxUN79LOPPugWVulzkqJEE4VJ1sFtAkb25RF2Leppc-WjmdmCzHLpaROVBQYGUTSXff29KAlM/s1600/close+playcards.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 242px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBhskkw5t5k4QNS9BBpIBT9tyBIFoUz3bawvg5l4aF_ZxW0wgz40zv7rYsAnl_Okg1-fCxUN79LOPPugWVulzkqJEE4VJ1sFtAkb25RF2Leppc-WjmdmCzHLpaROVBQYGUTSXff29KAlM/s320/close+playcards.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5471720573386172530" /></a><br />अब फ़ैसला लेना है उन्हें जिन्हें हमने चुना, अपने बेहतर कल के लिए।<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhw7RDIwROZGrUhtVTwzZK6F3wCiquHWETf75Mc7K9i_5qSSB2JsdWm4CdFXNGkuyT76tLnE_Tfx85_3cq6ZmRbRb0W-gV_j_V8DN7ZskXQ2jpkRZvGbJxBq0zawBg4Evaocg9uTiv0b8/s1600/march.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 160px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhw7RDIwROZGrUhtVTwzZK6F3wCiquHWETf75Mc7K9i_5qSSB2JsdWm4CdFXNGkuyT76tLnE_Tfx85_3cq6ZmRbRb0W-gV_j_V8DN7ZskXQ2jpkRZvGbJxBq0zawBg4Evaocg9uTiv0b8/s320/march.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5471721162657348530" /></a><br />हमने हज़ारों कदम बढ़ाए, अब एक क़दम सरकार बढ़ाए।<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjYrWcO9zLC7wVajebK2JwUw907RSjM0KUg4XpGSzYMpwIOE8sZOBDrDFSpu6JqWZ2JQvTbq3DaQg3wQiUU0XM_t4XzJE6e3j8IbG-J6HHAg3vNImhtf3KQnqK_I9VIIF1tUGlE9vjB8Bg/s1600/playcards.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 221px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjYrWcO9zLC7wVajebK2JwUw907RSjM0KUg4XpGSzYMpwIOE8sZOBDrDFSpu6JqWZ2JQvTbq3DaQg3wQiUU0XM_t4XzJE6e3j8IbG-J6HHAg3vNImhtf3KQnqK_I9VIIF1tUGlE9vjB8Bg/s320/playcards.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5471721169421742754" /></a><br />(निरुपमा हत्या कांड की सीबीआई जांच की मांग करते पत्रकार, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता, जिन्होंने 15 मई को दिल्ली में एक शांति मार्च निकाला।)Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-45745348693961173052010-03-22T23:02:00.000-07:002010-03-22T23:13:57.174-07:00अनोखे भगत !<div align="justify"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtFs3FMvEkpQLlskaxCA1GFRhm-u8tK14sgsCAmGlHtzDeGGJI87sRfefneRt2Ea7LLjG9ud-pDeLtoXw0A2TfGfDftJxOnVbigEx7mZy8oJnjN406ErWtnYa9zlib3DYlVv_lu6OakQk/s1600-h/oo.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5451708075565577618" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 284px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtFs3FMvEkpQLlskaxCA1GFRhm-u8tK14sgsCAmGlHtzDeGGJI87sRfefneRt2Ea7LLjG9ud-pDeLtoXw0A2TfGfDftJxOnVbigEx7mZy8oJnjN406ErWtnYa9zlib3DYlVv_lu6OakQk/s320/oo.jpg" border="0" /></a>आज जब भगत सिंह की शहादत पर अपने चैनल के लिए एक स्टोरी लिखते वक्त किसी ने मुझसे पूछा, कि भगत सिंह के साथ तो दो और क्रांतिकारी सुखदेव और राजगुरु भी फांसी चढ़े थे। तो फिर भगत सिंह को ही ज्यादा तवज्जो क्यों। भगत सिंह को ज्यादा तवज्जो क्यों ? सवाल न तो नया है न ही अनोखा। लेकिन, भगत अनोखे हैं। फांसी पर चढ़ने के कुछ मिनट पहले तक वो लेनिन को पढ़ रहे थे। अंतिम इच्छा थी कि जेल की ही एक महिला सफाई कर्मचारी के हाथ से खाना खाना। लेकिन, अनोखापन क्या है। भगत ने २४ साल के भी कम उम्र में इतना पढ़ा कि तीन बार पीएचडी हो जाए। उससे ज्यादा उन्होंने समझा। फांसी के तीन दिन पहले उन्होंने चिठ्ठी लिखी कि तीनों क्रांतिकारियों पर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी ठहराकर गोली मार दी जाए, न कि अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी साउंड्रस की हत्या के जुर्म में सज़ा दी जाए। मरने का ये जुनून क्या उन्हें अनोखा बनाता है, शायद ये भी नहीं ? उन्हें अनोखा बनाता है उनके विचार। कोई भी आंदोलन या कोई भी संघर्ष तब तक अधूरा है जब तक कि यथास्थिति को ध्वस्त करते हुए नवनिर्माण <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDrd3aCMoBklGRbUaLAy8kUR0GGU6chHzsqOdnXKXgUa6GmtByP6L2wTcTEloJOdqCljWSFPZh_YMvwkRW2cArmLZhFzRlqoPojQlBf4Qzmgf9IiSltHVQknEaT0n_dBW6TXQ9TfTd9B0/s1600-h/Gallows.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5451708221189551122" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 192px; CURSOR: hand; HEIGHT: 295px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDrd3aCMoBklGRbUaLAy8kUR0GGU6chHzsqOdnXKXgUa6GmtByP6L2wTcTEloJOdqCljWSFPZh_YMvwkRW2cArmLZhFzRlqoPojQlBf4Qzmgf9IiSltHVQknEaT0n_dBW6TXQ9TfTd9B0/s320/Gallows.jpg" border="0" /></a>की नींव न रखी जाए। नवनिर्माण का ये नक्शा भगत सिंह के पास था। ऐसा नहीं कि वो लेनिन या मार्क्सवादियों के रास्ते पर ही भारत का भविष्य देखते हैं, लेकिन समाजवाद की अवधारणा के समर्थक तो वो थे ही। आज जो वामपंथ हम अपने देश में देखते हैं वो भारतीय परिवेश में बिलकुल अप्रासंगिक है। भारतीय मानस अर्थ से ज्यादा एक ऐसे आध्यात्मिक संसार की तरफ देखता रहता है जहां ऊंच नीच, जात-पात, राजा रंक सामाजिक व्यवस्था नहीं बल्कि किसी और की बनाई व्यवस्था है जिसे हमें नहीं छेड़ना चाहिए। मामला पूरी तरह आर्थिक ताने बाने में ही नहीं गुंथा। भगत सिंह ये समझ चुके थे। वो यूंही नहीं घोषणा करते ही कि -- मैं नास्तिक हूं--वो ये भी बताते हैं कि "Why I am Atheist". भगत चाहते थे कि विद्धार्थियों, मज़दूरों और किसानों से सीधे संवाद स्थापित करें, लेकिन उन्हें इसका ज्यादा मौका नहीं मिल पाया। लेकिन, बात तो पहुंचानी थी सो उन्होंने सोच समझ कर तय किया कि अपने आप को एक उदाहरण बनाकर देश के सामने रख दो। और जाते जाते अपनी बात उन्होंने न सिर्फ अपनी लेखनी के ज़रिए कही बल्कि अदालती कार्यवाही में उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के दलीलों की धज्जियां उड़ा दीं। हालत ये हुई कि अंग्रेज भगत सिंह को फांसी देने में भी डरने लगे, इसीलिए उन्हें चोरी छिपे फांसी पर लटकाया गया और जलाया भी गया। भगत इसीलिए अनोखे हैं। इंक़लाब ज़िंदाबाद। </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-58954301616417478452010-03-02T22:22:00.000-08:002010-03-02T22:25:53.261-08:00घाटे में कल्याण कैसे?<div align="justify"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEZz-eK91tK9x0oXmCYKoX1hfMimOi4aINsiZYiTJzg6-iaYoduWU-cDSeIbyNKiEq6396wEOSDIvfIKqKKA4CilD-hTQ3EhjiBHeKfhr76c25ylJCD_xYtRTO11eUY__GabbN6y2q4is/s1600-h/pop.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5444289734879537026" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 170px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEZz-eK91tK9x0oXmCYKoX1hfMimOi4aINsiZYiTJzg6-iaYoduWU-cDSeIbyNKiEq6396wEOSDIvfIKqKKA4CilD-hTQ3EhjiBHeKfhr76c25ylJCD_xYtRTO11eUY__GabbN6y2q4is/s400/pop.JPG" border="0" /></a> बजट आ गया है, कहीं हाय तौबा मची है तो कहीं सेंसेक्स छलांगे मार रहा है। घबराने की कोई बात नहीं है क्योंकि हाथ जो आम आदमी के साथ है। लेकिन, मेरी छोटी सी बुद्धि में ये नही समा पा रहा कि आख़िर घाटा (राजकोषिय) तो सरकार को कम करना ही है, कब तक घाटा की व्यवस्था चलती रहेगी। समझदारी इसी में है कि अच्छे समय में इस काम को कर दिया जाए, न हो तो कम से कम इसे शुरु तो कर ही दिया जाए। बजट में राजकोषिय घाटा साढ़े छ फीसदी से भी ज्यादा है। आम लोग शायद इसे न समझ पाएं लेकिन इसका असर बड़े भीतर तक जाते हैं, आम आदमी की जेब को खोखला करने की हद तक। इस घाटे में राज्यों के घाटे को मिला लें तो फिर भगवान ही मालिक है। ये क़रीब १० फीसदी तक चला जाता है। यही हाल रहा तो तेल कंपनियों के दिवालिया होने में देर नहीं लगेगी। लाख करोड़ों की सब्सिडी देकर भी आम किसानों आम रोज़पेशा लोगों का कल्याण ही नहीं होता। अपने आफिस के कार वालों को हसरत भरी निगाहों से देखता था, अब उनमें से कईओं ने झाड़ पोंछ कर अपनी फटफटिया निकाल ली है। ये देखकर अजीब सा डर लगा कि चर चक्कवा पर बैठने का सपना क्या ऐसे ही रह जाएगा। क्या मेरा भी कल्याण नहीं हो पाएगा। उन करोड़ों लोगों का क्या होगा जो चर चक्कवा और दु चक्कावा जैसे सपनों के बारे में भी सोच नहीं सकते हैं। चिंता सबसे बड़ी मेरी ये है कि संविधान में दर्ज उस शब्द का क्या होगा जो एक कल्याणकारी राज्य का हमसे वादा करता है। ऐसे में याद आती है अंग्रेजी की वो कहावत कि सरवाइवल आफ द फिटेस्ट। हमारे शासक कहते हैं कि हम इतने मज़बूत हो चुके हैं कि इस तरह के महंगाई के झटके को सह सके। इस सवाल पर चर्चा करने का वक्त आ गया है कि हम पूछें कि फोकस क्या है कल्याणकारी राज्य या राजकोषिय घाटा। </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-12456970670698010012010-02-27T21:16:00.000-08:002010-02-27T21:23:09.353-08:00बुरा न मानो होली है...<div align="justify"> <img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5443159273604349474" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 169px; CURSOR: hand; HEIGHT: 400px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiizNpnAQkbeF50cmGUq9QanzaC6jcdfOgPQmoB4iU-32EejhfXUd32XYQCobN23uBLZLSj7lCxkrDqBlFb-XIJ9Lb-D8zLL_XmDjH-emSM8JJM9Yl-1aSq_Ce2JMlun_tJ3vIqFLRBJ1I/s400/amitabhcol.jpg" border="0" />अभी अभी ख़बर मिली है कि अगला नोबेल शांति पुरस्कार अमिताभ बच्चन को देने का फैसला किया गया है, इसके तुरंत बाद मिस्टर बच्चन ने घोषणा की है कि वो पाकिस्तान की एक फिल्म में लीड रोल करेगें। इस फिल्म का मुहूर्त शाट में ओबामा, मनमोहन सिंह, जरदारी होंगे। शांति और मेल मिलाप की इस नई कोशिशों को देखते हुए पाकिस्तान में बैठे दाउद और हाफिज़ सईद ने ऐलान किया है कि वो सारे ग़लत धंधे छोड़कर शांति का संदेश देने वाली मिस्टर बच्चन की फिल्म में अपना पैसा लगाएगें। साथ ही उनके सारे जिहादी कश्मीर और आफगानिस्तान के लौटकर फिल्म में एक्सट्रा और दूसरे रोल करेगें। एक दूसरी ख़बर के मुताबिक सूत्रों ने बताया है कि राममंदिर के मुद्दे से जुड़े तमाम संगठनों ने ये तय किया है कि इस मुद्दे को अदालत के भरोसे छोड़कर अब उनका संगठन सर्व शिक्शा अभियान और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में बतौर स्वयंसेवी कार्यकर्ता के तौर पर जुड़ेगें। अर्थ जगत के ख़बरों की बात करें तो भारतीय सांख्यिकी संगठन के ताज़ा <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNPKVc62I9Nqbz9N3Uwod3q6uIQLfLYgw7YgKrLP2B3blJjHboa9iSha7T0x77RHHYwLCNkrrpl7qcVgp5iuRWc5GTG0GdU0xgKvAs4S6vF7nLBXiYIFOXIxUIcj5VIre4JOoJkrTiBAI/s1600-h/manmohan_singh_166075.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5443159376425960354" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 266px; CURSOR: hand; HEIGHT: 400px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNPKVc62I9Nqbz9N3Uwod3q6uIQLfLYgw7YgKrLP2B3blJjHboa9iSha7T0x77RHHYwLCNkrrpl7qcVgp5iuRWc5GTG0GdU0xgKvAs4S6vF7nLBXiYIFOXIxUIcj5VIre4JOoJkrTiBAI/s400/manmohan_singh_166075.jpg" border="0" /></a>आंकड़ों से ये पता चलता है कि भारतीयों की मासिक आय तेज़ी से बढ़ते हुए अमेरिकियों की औसत आय को पार कर गई है। चीन ने अगले वित्तिय वर्ष के लिए की गई घोषणाओं में कहा है कि अब उनकी सारी मुनाफा कमाने वाली व्यापारिक इकाई अब भारतीय सरकार के अंदर अपना काम करेगी। अब सारे लाभांश पर भारतीय सरकार का अधिकार होगा, जहां चीनियों को लाभ का कुछ हिस्सा दिया जा सकता है। ये हिस्सा किताना होगा इसका फैसला संसद में दो तिहाई बहुमत से ही किया जा सकेगा। खेल की ख़बरों के बात करें तो इसी बीच पाकितानी खिलाड़ी शाहिद अफरीदी ने तय किया है कि अब वो गेंद की जगह फिर से घर की दाल रोटी खाने की आदत डाल लेगें। इस ख़बर के तुरंत बाद आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के कप्तान ने उन्हें भारतीय मालपुए और गुजिए भेजे हैं। आईसीसी के विशिष्ट पैनल ने ये तय किया है कि अगला क्रिकेट विश्वकप चुकी भारतीय उपमहाद्वीप में हो रहा है इसलिए भारतीय टीम के हर मैच में विरेंद्र सहवाग और सचिन को हर मैच में तीन तीन बार आउट होने पर ही आउट समझा जाएगा। इस बाबत सारे क्रिकेट खेलने वाले देशों को सूचना भेज दी गई है। सूत्रों ने बताया है कि ज़िम्बाबे को छोड़कर सारी टीमों ने इस सर्वसम्मती से मान लिया है। मौसम की ख़बरों की तरफ रुख करते हैं मौसम विभाग को ताज़ा मिले फैक्स में मिस्टर इंद्र जो स्वर्ग नामक राज्य के <span class="">प्रमु<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3dXOzia8k3i4DZChOzZIp8XRgF5wVj9VaKp2A4hcMhTE_C6mK1GGHULA3TQFKPMNiXWEdh-yDjSkKqcHP8TurnXcylGlUSiecUkEYzoecjFyYyWZGVnhrQgFO4TjrT5bW9act0bFN13c/s1600-h/India-China.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5443159680660121346" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 239px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3dXOzia8k3i4DZChOzZIp8XRgF5wVj9VaKp2A4hcMhTE_C6mK1GGHULA3TQFKPMNiXWEdh-yDjSkKqcHP8TurnXcylGlUSiecUkEYzoecjFyYyWZGVnhrQgFO4TjrT5bW9act0bFN13c/s400/India-China.jpg" border="0" /></a>ख</span> हैं साफ किया है कि वो अगले ५० सालों तक बारिश और मानसून को किसानों की ज़रुरत का ध्यान रखते हुए लगातार आपूर्ति जारी रखेगें। भारतीय मौसम विभाग ने इस प्रस्ताव को मान लिया है।.........होली के इस विशेष बुलेटिन में फिलहाल इतना ही। नमस्कार, होली की ढेर सारी शुभकामनाएं.</div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-61120896453904678362010-02-21T19:08:00.000-08:002010-02-21T21:04:35.633-08:00हमारे नेता जी !<div align="justify"><br /></div><div align="justify"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3Ha9XUnow9mam8qTCjPYQYHX6hJEq4um_yMKQyjicYL855AmCo5f6nxfCk9atlcBcynBEeqX-CjSNeARqCkl4iYW-9xHVP_wKs77qtXYlk31DNy9aNV8_dYVWEIhcLHMw7Y2OxN6Fji4/s1600-h/bihar+vidha.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5440928727595838850" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 266px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3Ha9XUnow9mam8qTCjPYQYHX6hJEq4um_yMKQyjicYL855AmCo5f6nxfCk9atlcBcynBEeqX-CjSNeARqCkl4iYW-9xHVP_wKs77qtXYlk31DNy9aNV8_dYVWEIhcLHMw7Y2OxN6Fji4/s400/bihar+vidha.jpg" border="0" /></a> अरे नेता जी तो नेता हैं, वो नव रसों के जानते वाले हैं। नेताजी डराते भी हैं और मस्ती में झुमने पर मजबूर भी कर देते हैं। इटावा से विधायक एक इंजीनियर को रौद्र रुप दिखाते हैं धमकाते हैं कि दूसरा औरेया कांड कर देगें। वही औरेया कांड जिसमें एक विधायक ने इस इंजीनियर को पीट पीट कर तड़पा तड़पा कर मारा था, क्या हुआ उनका अब तक जांच हुई कि नहीं पता नहीं। इटावा के विधायक की हिम्मत तो देखिए, औरेया कांड उनके लिए शर्म नहीं बल्कि प्रेरणा का स्रोत बना है। नाम पर गौर करें भीमराव अंबेडकर। बताने की ज़रुरत नहीं इस नाम का मतलब क्या है। कब समझेगें ये नेता कि उनको धौंस जमाकर शासन करने के लिए नहीं चुना गया है। वो सेवक हैं। <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPVbAVDrwPkDrNteLkxMPCoXHSBqbVlDvVQta2lTisXDxap0-Lg9jC_ONii9IUAKnm4M2fFqBy0mUH4DWReWuzX1MdX6XXe6b-c3USups6nKs0V_STbdREuxXYGZ053KZ0CaBDE_bYtoM/s1600-h/21-mayawati-200.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5440928904098449074" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 231px; CURSOR: hand; HEIGHT: 175px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPVbAVDrwPkDrNteLkxMPCoXHSBqbVlDvVQta2lTisXDxap0-Lg9jC_ONii9IUAKnm4M2fFqBy0mUH4DWReWuzX1MdX6XXe6b-c3USups6nKs0V_STbdREuxXYGZ053KZ0CaBDE_bYtoM/s400/21-mayawati-200.jpg" border="0" /></a>दूसरी ख़बर, ये विधायक पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की जन्मभूमि जीरादेई से विधायक है। उस मिट्टी का लेश मात्र भी लगता है वो नहीं छू पाए हैं। पटना में पिछले दिनों बेशर्मों की तरह ठुमके लगाते देखे गए। वो भी भौंडी अदाओं के साथ, कुछ वैसे ही नर्तकियों के साथ। आप सबने टीवी पर देखा होगा दुहराने की ज़रुरत नहीं। दुहराने की बात है कि हम क्यों ऐसे जनप्रतिनिधियों को स्वीकार कर लेते हैं, क्यों उनके इन धमकियों को लेकर कोई गुस्सा नहीं फूटता। मैं बार बार सोचता हूं कि हमने क्यों अपने पुलिस अधिकारियों, नेताओं और सरकारी विभाग के वो तमाम अफसरानों को ये छूट दे रखी है कि आइये हम पर जो मर्जी किजीए। हम बस आपको खुश करके जी लेगें, कुछ चमचे अपना काम भी बना लेगें। मैं सिर्फ कोस नहीं रहा इसका जवाब भी दे रहा हूं, हालांकि वो भी दूहराव ही है। वो ये कि इस बीमारी की जड़ खुद हममे हैं। क्योंकि हमारा तंत्र न तो सवाल पूछने - उठाने की इजाज़त देता है न ही उसे प्रोत्साहित करता है। कोई (एक मुख्यमंत्री)नेता अपनी मूर्ति पर मूर्ति लगवाता है, तो कोई (एक पूर्व प्रधानमंत्री) सरेआम गाली गलौज करता है। </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-37220472249890170142009-12-30T20:13:00.000-08:002009-12-30T20:20:54.909-08:00नया साल नई शुरुआत !<div align="right"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEigl9qu9rITG59gjKZJ16aD2M82f6FsjsqfJ2uPjXc2hi7Vm7-an6mZH6KrLoFWIzTUJH_B_jozvyvuIlpajMogCYvhWQoYoDX1RELPiZwmsF5VpCG7mVJth6z1ZdYS4v0aQmtlgtZjHt8/s1600-h/a.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5421249853820482066" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 256px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEigl9qu9rITG59gjKZJ16aD2M82f6FsjsqfJ2uPjXc2hi7Vm7-an6mZH6KrLoFWIzTUJH_B_jozvyvuIlpajMogCYvhWQoYoDX1RELPiZwmsF5VpCG7mVJth6z1ZdYS4v0aQmtlgtZjHt8/s400/a.JPG" border="0" /></a> कल से तारिखों के कुछ हिस्से हमेशा के लिए बदल जाएगें।<br />1 जनवरी से नई शुरुआत करेगें।<br />क्या हम तुम फिर नए सिरे से बात करेगें।<br />इस बार ई मेल नहीं दिल से मिलेगें।<br />इस बार मोबाइल से नहीं, गले मिलेगें।<br />नौ-कड़ी (यानी नौकरी) की आपाधापी छोड़, जम कर पार्टी करेगें।<br />बैठकखाने में चर्चा छोड़, सड़कों पर <span class="">उतरेगें।</span><br />जो ग़लत हो उसे ग़लत कहेगें।<br />नया साल नई शुरुआत बने सबको <span class="">कहेगें।<img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5421250264117074146" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 224px; CURSOR: hand; HEIGHT: 300px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinWUbby4v42Ir2qaGcLKyYTfI1loHVNyysFUtxBCZxOT2CctXR8gkcmcG64sQPHrusCDV4olUmXy6HQSCuBKy235Uho20NSnG2D3eTZvvxJEujiJBBR-9ISkuXqdGjNkqMAU2ciCsU1_M/s400/1.jpg" border="0" /></span> </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-85738352979430658512009-12-26T08:26:00.000-08:002009-12-26T08:33:18.337-08:00अशोक उपाध्याय को मरना नहीं चाहिए था...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8SrdrNBISaza06fbl3eSTiAsl-xgKldgKiY3UbeecKYh8xnVx4hD1TZiSN0WiuNHa0WgW3nPF9UT2sfrzqfA_ZMIe9cr2fIyharar8SFYIch2CoyYwWExMw-4RkZaTG5kF4-L7UTUj5Y/s1600-h/ashok103.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5419583693282744802" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 315px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8SrdrNBISaza06fbl3eSTiAsl-xgKldgKiY3UbeecKYh8xnVx4hD1TZiSN0WiuNHa0WgW3nPF9UT2sfrzqfA_ZMIe9cr2fIyharar8SFYIch2CoyYwWExMw-4RkZaTG5kF4-L7UTUj5Y/s400/ashok103.jpg" border="0" /></a> नाइट शिफ्ट में अशोक सर की मौत हो गई। ईटीवी में मेरे रहते शायद ही कभी उन्हें नाइट शिफ्ट में देखा हो। वो भी ईटीवी राजस्थान से जुड़े थे और मैं भी, लेकिन उनसे काफी जूनियर। उस शानदार व्यक्तित्व को आख़िर कौन भूल सकता है। वीओआई में वो नाइट शिफ्ट के इंचार्ज थे। मैंने ईटीवी 2004 के अगस्त महीने में ज्वाइन किया था और ईटीवी राजस्थान से जुड़ाव अक्टूबर, 2004 से हुआ हैदराबाद में ही। मैं ऐंकर था और अशोक सर भी उस दौरान मूल रुप से ऐंकरिंग ही कर रहे थे। शानदार ऐंकरिंग अपने उस ऐंकरिंग से शुरुआती दौर में उन्हें देखकर सोचता था कि आख़िर को कैसे बिना फम्बलिंग किए कैसे इतना स्मूद ऐंकरिंग कर सकता है। कहने की ज़रुरत नहीं कि काफी कुछ सीखा। अशोक उपाध्याय ईटीवी राजस्थान के डेस्क इंचार्ज थे और मैं नया नवेला एंकर। आज दिल में तुफान है उनके जाने से मन हो रहा है कि चिल्ला चिल्ला कर रोऊं। क्यों याद आ रहे हैं वो इतना। शायद इसलिए कि आज मैं जो हूं उसमें उनका एक बड़ा हाथ है। भूल नहीं सकता कि कैसे वो सपोर्ट करते थे, कैसे अपने महत्वपूर्ण बुलेटिन मुझसे जानबूझकर करवाते। चाहे चुनावी बुलेटिन हो या प्राइम टाइम बुलेटिन। काफी कम समय में मुझे काफी कुछ करने का मौकै मिला, अशोक सर ने बहुत किया। कभी कभी सोचता सर ऐसा क्यों करते हैं, क्या उनको अपना करियर आगे नहीं बढ़ाना। लेकिन, उनके चेहरे की निशचिंतता आश्वस्त करती। सारे सवालों को शांत कर देती। लेकिन के बुलेटन बनाने वाले लोगों पर कोफ्त होती कि कैसे लोग बुलेटिन बना रहे हैं। लेकिन जब अशोक सर बुलेटिन बनाते तो मज़ा आ जाता, लेकिन मैं जब होता तो वो बुलेटिन या तो ख़ुद अपना बनाया बुलेटिन पढ़ते या कोशिश में रहते कि मैं पढूं। लेकिन उनका बुलेटिन पढ़ना आसान भी नहीं होता था। साथ ही ये टेंशन कि अशोक सर पीसीआर में मौजूद हैं।<br />क़रीब पौने दो साल बाद मैंने ईटीवी छोड़ दिया। लोकसभा टीवी ज्वाईन करने के बाद कभी कभी बात हो जाती धीरे धीरे वो भी बंद होता गया। फिर पता चला कि वो वीओआई ज्वाइन करने वाले हैं। नौकरी के लालच में मैंने भी फोन किया, आख़िर सीनियर प्रोड्यूसर थे वो। लेकिन उनका स्नेह बरक़रार था। दिल्ली में कभी उनसे मिल नहीं पाया अपने पहले औपचारिक बाॅस से....अब भी कभी मिल भी नहीं पाउंगा। उनकी मौत नहीं होनी चाहिए थी...ना मैं मानने को तैयार नहीं...उन्हें अभी काफी ओमप्रकाशों की ज़रुरत है। ये सीखने की कि कैसे चुपचाप बेहतर काम हो सकता है। उनकी मौत मीडिया की कार्यशैली पर भी सवाल उठाती है....अशोक सर, आपको नहीं जाना चाहिए था। लोग आपको देखकर आप जैसा बनना चाहते थे, लेकिन आपकी इस तरह से मौत किसी को आपकी तरह होने से रोकेगी।Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-55385540571151257092009-10-15T23:12:00.001-07:002009-10-15T23:16:28.679-07:00शुभकामनाएं<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBTmxcBjs844SVb_vCGiEms5Bex6v6d4lxK_pwLo9RmSfmDmr5YKMNuqWCFYdzN-Izzn59FEDm0CZJNVdooy77tlhI2wP7l2N4XiGCygSXaamGvURHf1mg3TBB-YMk7_rjeIRD5-FZY9I/s1600-h/last.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5393077780065883074" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 327px; CURSOR: hand; HEIGHT: 400px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBTmxcBjs844SVb_vCGiEms5Bex6v6d4lxK_pwLo9RmSfmDmr5YKMNuqWCFYdzN-Izzn59FEDm0CZJNVdooy77tlhI2wP7l2N4XiGCygSXaamGvURHf1mg3TBB-YMk7_rjeIRD5-FZY9I/s400/last.JPG" border="0" /></a><br /><div></div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-54784391829756735202009-08-29T22:55:00.000-07:002009-08-29T23:05:57.953-07:00जिन्ना ने कहा था...<div align="justify"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhd71h7buofCbc0ACiZxYCQJbdIfQgEiXdWhQrtUHci6xdho7MpUuUgnFhb7hcCMEFCd-PWNoBnp7kRDtTPWlltAZNALMwxirmIUmX7HNRdbKGn5OvuaqMdbd3RF1-uyk5GqJctuywMlZc/s1600-h/muhammad_ali_jinnah_mahatma_gandhi.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5375632226162170098" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 246px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhd71h7buofCbc0ACiZxYCQJbdIfQgEiXdWhQrtUHci6xdho7MpUuUgnFhb7hcCMEFCd-PWNoBnp7kRDtTPWlltAZNALMwxirmIUmX7HNRdbKGn5OvuaqMdbd3RF1-uyk5GqJctuywMlZc/s320/muhammad_ali_jinnah_mahatma_gandhi.jpg" border="0" /></a> [1940]<br /></div><div align="justify">मुस्लिम लीग के एक सम्मेलन में जिन्ना ने कहा...</div><div align="justify">...ज्यादातर ये पाया गया है कि उनके (हिंदुओं के) जो नायक हैं वे मुसलमानों के दुश्मन हैं...ऐसी दो कौमों को, जिनमें से एक अल्पसंख्यक है और दूसरा बहुसंख्यक, एक देश में बांध देने से असंतोष बढ़ेगा और उस देश के लिए बनाई जाने वाली सरकार का तानाबाना अंतत: टूट जाएगा। </div><div align="justify"> </div><div align="justify">[ अगस्त, 1944]</div><div align="justify">जिन्ना ने मुस्लिम छात्रों को संबोधित करते हुए कहा...</div><div align="justify">...पाकिस्तान बन जाने से हिंदू मुसलमान खुश होंगे, क्योंकि ये उनके हित में यहीं ठीक रहेगा। वे कभी भी किसी को भी, चाहे वह अफगान हो या पठान मनमानी नहीं करने देंगे, क्योंकि भारत भारतीयों के लिए है। </div><div align="justify"> </div><div align="justify">[11 अगस्त, 1947]</div><div align="justify">जिन्ना ने कहा...</div><div align="justify">...यदि पाकिस्तान विभिन्न देशों के अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अपनी कोई जगह बनाना चाहता है तो उसे संप्रदाय और मज़हब से ऊपर उठना होगा। आप आज़ाद हैं, आप अपने मंदिरों में जाने के लिए आज़ाद हैं। आप अपनी मस्ज़िदों या दूसरे पूजा स्थलों पर जाने को आज़ाद हैं। आप किसी भी मज़हब, जाति, नस्ल से ताल्लुक रखते हैं, सरकार के कामकाज से उसका कोई सरोकार नहीं होगा। </div><div align="justify"><span class=""></span> </div><div align="justify">एक बार गोपाल कृष्ण गोखले ने जिन्ना के बारे में कहा...</div><div align="justify">...वे सच्चे गुणों से बने हैं और तमाम सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों से मुक्त हैं, यह उन्हें हिंदू-मुस्लिम एकता का सबसे अच्छा राजदूत बनाता है। </div><div align="justify"><br /></div><div align="justify">.......इन बयानों के ज़रिए मैं कोई विश्लेषण नहीं कर रहा। बल्कि, बहस को समझने की कोशिश कर रहा हूं और सबसे पूछ रहा हूं कि जो अस्पष्टता ये बयान पेश करते हैं वही क्या समस्या की जड़ है। जिन्ना सांप्रदायिक थे या धर्मनिरपेक्ष या कुछ और...आप क्या कहते हैं।</div><div align="justify">(जिन्ना के ऊपर लिखे बयान मैंने अलग अलग पत्रिकाओं से लिए हैं।) </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-78083634634543679972009-08-21T23:29:00.000-07:002009-08-21T23:41:21.802-07:00"नाखून क्यों बढ़ते हैं"<div align="justify"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMw_-lDy5Nvwvddg4gaGrNye3QjHoIS0m8aKr-nvH0VE5eSovLNhSWABrM6i57W3wEdFPFgo6utvYIEjeGAGG9XkJrbMq8qouVOdjDeAiQhx0xAvjahbMaNP05zvdY7qw1kcxzNs-BRlg/s1600-h/b.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5372671954290077762" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 260px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMw_-lDy5Nvwvddg4gaGrNye3QjHoIS0m8aKr-nvH0VE5eSovLNhSWABrM6i57W3wEdFPFgo6utvYIEjeGAGG9XkJrbMq8qouVOdjDeAiQhx0xAvjahbMaNP05zvdY7qw1kcxzNs-BRlg/s320/b.JPG" border="0" /></a> कल दिल्ली में भारी बारिश हुई, इतनी कि.... कितने विशाल पेड़ और खम्भे भूमिशायी हो गए। सड़क पर जाम में फंसे फंसे बड़ी कोफ्त हो रही थी, समझ नहीं आ रहा था कि थोड़ी बूंदाबांदी हो या मूसलाधार बारिश सड़कें फट से जाम हो जाती हैं। चौराहों, गलियों, तिराहा सब जगह गाड़ियां फंसी हुई। हर कोई सबके ऊपर से निकल जाना चाहता था। ट्रैफिक सिगनल खराब तो थे ही। लेकिन बारिश ने जैसे मेरी ही तरह सबको गुस्से से भर दिया था। इतना गुस्सा कि मेरी दोपहिया, एक कार वाले से बस "छुआ" ही था कि वो उबल पड़ा मेरे ऊपर। यहां तक कि जाम खुलने के बाद भी अपनी गाड़ी मेरे आगे पीछे करता रहा जैसे वो मुझे मार देने को ऊतारु हो। मैं सोच रहा था कि इतने "छुने" की, पता नहीं मुझे कितनी बड़ी सज़ा देना चाहता है ये। मै डर भी गया कहीं न कहीं। गाड़ी के अंदर तीन मुसटंडे बार बार झांक रहे थे। वो बोल क्या रहे थे ये बताने की ज़रुरत नहीं। ऐसा मैंने कई बार दूसरे लोगों के साथ होते देखा था तो अफसोस होता था और सब की तरह लोगों के "सिविक सेंस" को गलियाता। लेकिन, कल मुझे हज़ारी प्रसाद द्विवेदी याद आ गए। ग्रैज्यूएशन के दौरान हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी का एक ललित निबंध पढ़ा <span class="">था<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgS6y4Bz5vyDFPqM3pcjFcUOXDgdwdQkmowuU88gSgiYwo2RM6D5lE0Os8Bkuvygi4DhBC0nyQlnwAlSDgu118VLjjCLUtvk9rNNScGpiefOFIqplHrKkj44So2u9xeVhJlz-LvGRbdB9A/s1600-h/a.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5372672582546487234" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 306px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgS6y4Bz5vyDFPqM3pcjFcUOXDgdwdQkmowuU88gSgiYwo2RM6D5lE0Os8Bkuvygi4DhBC0nyQlnwAlSDgu118VLjjCLUtvk9rNNScGpiefOFIqplHrKkj44So2u9xeVhJlz-LvGRbdB9A/s320/a.JPG" border="0" /></a></span> "नाखून क्यों बढ़ते हैं"। निबंध में एक बच्चा अपने पिता से पूछता है कि नाखून क्यों बढ़ते हैं। जवाब जो मुझे समझ में आया वो ये कि आदिम ज़माने में मनुष्य जब अपने हाथों शिकार करता था तो नाखून कई बार फाड़ने चीरने में बड़े काम आते थे। लेकिन मनुष्य धीरे धीरे सभ्य होता गया तब मनुष्य ने नाखूनों को भी नियंत्रण में रखना सीख लिया। यानी नाखून हमारी असभ्य व्यवहार का प्रतीक है जिसने हमें हज़ारों सालों की सीख के बाद नेल कटर से काटना यानी नियंत्रण में रखना सीख लिया है। लेकिन, ये बढ़ना आज भी बंद नहीं हुए हैं। नाखून तो बढ़ते रहते हैं...और अगर आप किसी सड़क जाम में फंसे हों तो फिर तो लगता है कि ये और तेज़ी से बढ़ते हैं। पता नहीं ये नाखून किसे, कब कितना नुकसान पहुंचा जाएं। ये और बात दिमाग में आई कि कहीं नाखून का संबंध हमारी दिमागी फितरत से तो नहीं। अगर ऐसा है, तो सप्ताह में एक दिन नहीं बल्कि हर रोज़ नाखून काटने पड़ेगें।......</div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-84372205175398827002009-08-20T04:55:00.000-07:002009-08-20T04:58:25.452-07:00अब किसकी बारी !<div align="justify"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOFMziHSo9a9R6GFjpvJcDkVU58FY7dkkqHPEh8eLgyngVQKx-uFanaEqxg5Ho175bCK_-lsDo29n4Mc9GAe5Aj47OqRhAjELuZXzRKJ2VDiX1YwZo5f7nmTu-TkeUk5UZUVjmb05zgSA/s1600-h/bjp2.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5372013922400891058" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 200px; CURSOR: hand; HEIGHT: 139px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOFMziHSo9a9R6GFjpvJcDkVU58FY7dkkqHPEh8eLgyngVQKx-uFanaEqxg5Ho175bCK_-lsDo29n4Mc9GAe5Aj47OqRhAjELuZXzRKJ2VDiX1YwZo5f7nmTu-TkeUk5UZUVjmb05zgSA/s200/bjp2.JPG" border="0" /></a> <span class="">शंकर</span> सिंह वाधेला, गोविंदाचार्य, उमा भारती, मदनलाल खुराना, कल्याण सिंह, बाबुलाल मरांडी.....जसवंत सिंह। इन सब नामों में क्या काॅमन है। यहीं कि इन्हें या तो पार्टी विद डिफरेंस ने या तो पार्टी के निकाल बाहर किया या फिर ये ख़ुद भाजपा को छोड़ चले। इस सूची में और कई नाम जोड़े जा सकते हैं, इसमें कोई शक नहीं। कई नाम इसमें वापस पार्टी में आए और फिर गए भी। जसवंत सिंह नया नाम हैं, आंखों में आंसू लिए पार्टी से निकाले जाने के बाद जब ये फौजी मीडिया से बात कर रहा था तो एक बार तो दिल भर आया। ख़ास बात जानने की क्या है, वो ये कि भाजपा को ये वरदान मिला है कि इस पार्टी से जो भी बाहर जाएगा या भेजा जाएगा वो ज़िंदा नहीं रहेगा...मतलब राजनीतिक तौर पर वो या तो हाशिए पर होगा या ख़त्म हो जाएगा। लेकिन, भाजपा को शाप ये है कि वो अपने पैर पर कुल्हाड़ी ज़रुर चालाएगा...और एक एक करके उसके महारथी गिरते जाएगें, नतीजा भाजपा गर्त और गर्त में गिरती चली जाएगी। मेरी नज़र तो इस पर है कि अगला नंबर किसका है। राजस्थान में वसुंधरा राजे ने विरोध का बिगुल बजा दिया है। राजस्थान में घमासान जारी है। जिन्ना की बात किए बगैर तो ये आलेख अधूरा है। जिन्ना का जिन्न पता नहीं उसी पार्टी को लपेटे में क्यों ले रहा है जो उसकी सबसे बड़ी विरोधी रही है। इसने न तो आडवाणी को छोड़ा और न अब जसवंत को। लेकिन, लाॅजिक की बात करें तो मान लें कि जसवंत ने जिन्ना को महापुरुष बताया तो उसके लिए 600 से ज्यादा पन्नों की दलील भी दी। लेकिन, आडवाणी ने तो सब बातें हवा हवाई की। लेकिन, किसको ज्यादा सज़ा मिली। एक आज भी पार्टी में शीर्ष पर विराजमान है वहीं दूसरा भाजपा का रावण घोषित हो चुका है। आडवाणी ने तो न सिर्फ पार्टी को बदनाम किया बल्की पार्टी कई बार हरवाया है। पार्टी को कन्फ्यूज़ भी किया है। पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती आज यही है कि वो आरएसएस की लाईन पर चलना चाहती है कि मध्य मार्ग अपनाने वाली पार्टी है। इस कन्फ्यूजन के सबसे बड़े जिम्मेदार आडवाणी ही हैं। इसकी सज़ा उन्हें तो अभी तक नहीं मिली लेकिन पार्टी ज़रुर भुगत रही है। </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-24255836102705742982009-07-31T02:00:00.000-07:002009-07-31T02:10:24.070-07:00बलुचिस्तान का सच!<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQKrnJ66p-9APSvessUu6MbwirTWWYzT6L4G_A_6Ln0f9qyZiJyxje_tWjewJh-fXd_qI9OBavc8a-ZpvrXToBNMtyk9owub0lM9YFLXrnuorRoZDvJvynTyFDV361nEkeDu2iZZvOZoM/s1600-h/india-pakistan-indiagames.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5364548189432146546" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 312px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQKrnJ66p-9APSvessUu6MbwirTWWYzT6L4G_A_6Ln0f9qyZiJyxje_tWjewJh-fXd_qI9OBavc8a-ZpvrXToBNMtyk9owub0lM9YFLXrnuorRoZDvJvynTyFDV361nEkeDu2iZZvOZoM/s320/india-pakistan-indiagames.jpg" border="0" /></a> --भाग एक-- <div align="justify">दो साल पहले की बात है जब भारत के नौसेना प्रमुख ने बलुचिस्तान के ग्वादर में बन रहे बंदरगाह को लेकर एक बयान दिया। ये बयान था कि जिस तरह चीन इस बंदरगाह के निर्माण में मदद दे रहा है वो भारत के लिए रणनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है। इसका सीधा अर्थ ये लगाया गया कि भारत को ये कतई ठीक नहीं लग रहा कि कराची के बाद पाकिस्तान एक और उसी तरह के बंदरगाह बनाने में लगा है। जिसमें चीन की एक बड़ी भूमिका है। यहां की स्थानीय बलूच आबादी भी इस बंदरगाह का भारी विरोध कर रही है। क्या भारत किसी तरह की रुची बलूचिस्तान में है। आज सवाल यही उठ रहा है। बलूचिस्तान से सीनेटर सनाउल्लाह बलूच का कहना था कि "हमसे ज्यादा तो परवेज़ मु्शर्रफ और इस्लामाबाद भारत के क़रीब हैं, हम तो काफी दूर हैं। हमारा संघर्ष हमारे लोगों का संघर्ष है। भारत के लिएो सबसे अच्छा मौका तो 1973 में था जब बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग अपने चरम पर थी।" सवाल है कि भारत पर सवाल क्यों उठ रहे हैं। पाकिस्तान कहता है कि आफगानिस्तान में भारत के एक दर्जन से ज्यादा सूचना केंद्र हैं जो कई तरह के भ्रम फैला रहा है। नब्ज़ यहीं है। भारत की आफगानिस्तान में बढ़ती भूमिका को लेकर पाकिस्तान खुश नहीं। भारत ही ऐसा देश है जो आफगानिस्तान के विकास में न सिर्फ अपना पसीना और पैसा लगा रहा है बल्कि वो अपना ख़ून भी लगा रहा है। क्या ये भलमनसाहत हमेशा दूष्टता का शिकार होती रहेगी। पाकिस्तान क्यों नहीं अपने गिरेबानं में झांकता है। पंजाब और पंजाबी राजनीति के दबदबे ने बलूचों को कहीं का नहीं छोड़ा। आज ऊंगली भारत पर उठाना सुरॿित निकासी की तलाश तो नहीं। लेकिन, शर्म अल शेख की संयुक्त घोषणा पत्र परेशान तो करती है। लेकिन झूठ तो झूठ होता है। पाकिस्तान चिल्ला चिल्लाकर दावा कर रहा था कि बलुचिस्तान में भारत की भूमिका को लेकर उसने भारत को डोज़ियर दिया है, लेकिन बाद में वो इससे नानुकूर करने लगा। बाद में अमेरिका के विशेष दूत रिचर्ड हाॅलब्रुक ने साफ किया कि ऐसा कोई डोज़ियर कभी दिया ही नहीं गया।...बाकि कहानी अगले पोस्ट में। </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-47397977035546197082009-06-06T04:32:00.000-07:002009-06-06T04:51:45.952-07:00ज्यादा खुश मत हों...<div align="justify"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLu7bsOqRinhtUgx6wSj55nPizyD0KWPZsmhyphenhyphenM8jDALZzmdtsIo08RQfLtPgNrNCwcyVAPGJ0EGnWZqhc9IpJcfG7ETkOXb7QNTrc-gFz5p29oy-PMFgwB5JxGs0O-aBWXeuzExIEj7Lg/s1600-h/Parliamentnew.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5344180121678025090" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 230px; CURSOR: hand; HEIGHT: 230px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLu7bsOqRinhtUgx6wSj55nPizyD0KWPZsmhyphenhyphenM8jDALZzmdtsIo08RQfLtPgNrNCwcyVAPGJ0EGnWZqhc9IpJcfG7ETkOXb7QNTrc-gFz5p29oy-PMFgwB5JxGs0O-aBWXeuzExIEj7Lg/s320/Parliamentnew.jpg" border="0" /></a> <span class="">दलित</span> महिला लोकसभा अध्यक्ष, महिला राष्ट्रपति और अल्पसंख्यक वर्ग से प्रधानमंत्री। क्या ये उपलब्धियां हमारे मज़बूत लोकतांत्रिक ढ़ांचे का परिणाम है? कई बार कोई भी इन तथ्यों के सामने खुश हो जाएगा, मैं भी खुश हूं। लेकिन, इन सबके पीछे छिपे बड़े सवाल परेशान करना नहीं छोड़ते। मैं वैयक्तिक रुप से मनमोहन सिंह का सम्मान करता हूं, लेकिन यहां बड़ा सवाल ये है कि क्या दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र को जनता का चुना हुआ प्रधानमंत्री नहीं मिल सकता? बिना कोई चुनाव जीते कोई इस देश में सत्ता की सबसे ऊंची कुर्सी तक पहुंच सकता है, तो ये लोकतंत्र की जीत से ज्यादा एक वफादार की वफादारी का सुफल है। एक बात साफ कर दूं कि मैं आडवाणी जी के कमज़ोर और मज़बूत की बहस में यकीन नहीं करता। महिला राष्ट्रपति की कहानी भी अलग नहीं, ये भी एक मास्टर स्ट्रोक की तरह आया था। हालांकि, हमारा संवैधानिक ढ़ांचा राष्ट्रपति के चयन में सत्ता पॿ का बोलबाला बताता है, लेकिन बात इसपर भी टिकी होती है कि किसे चुना जा रहा है? किसी की योग्यता पर सवाला नहीं, लेकिन सवाल नीयत का है। इसे कहीं से भी महिला <span class="">सशक्तिक<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0KseBLl3AuO2_P99b1BjmeyksGroigyxksgvoI1Gs-my4LRiDgFwFXcli9uNM3dV7XG0_7k-JFuTOotf1IfUKQGehVeBAYxKQWu-kiOCz9uG48U6CDhQ5oxE7XpUct22UgfRs-9tRrxU/s1600-h/untitled.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5344180729128483682" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 232px; CURSOR: hand; HEIGHT: 155px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0KseBLl3AuO2_P99b1BjmeyksGroigyxksgvoI1Gs-my4LRiDgFwFXcli9uNM3dV7XG0_7k-JFuTOotf1IfUKQGehVeBAYxKQWu-kiOCz9uG48U6CDhQ5oxE7XpUct22UgfRs-9tRrxU/s200/untitled.bmp" border="0" /></a>रण</span> समझने की भूल न करें। ये जादूई टोपी से निकले एक नाम की तरह था। महिला लोकसभा अध्यक्ष की तरफ आते हैं। फिर वही सवाल कि क्या पहले दलित और महिला स्पीकर के लिए हम देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी प्रमुख की जादूई टोपी से एक नाम निकलने के मोहताज हैं?अगर कोई दूसरा नाम निकल जाता तो। मीरा कुमार को इस कुर्सी पर क्या स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा ने पहुंचाया है, नहीं। इसके पीछे उनकी विरासत और वफादारी का पारितोषिक है। यहां भी मैं योग्यता की बात नहीं करता, ये मुद्दा आप लोगों पर छोड़ता हूं। क्या आपको लगता है कि ये तीनों शीर्ष पर बैठे सम्मानित व्यक्ति कभी भी किसी मुद्दे पर 10 जनपथ के आगे सोच पाएगें या बोल पाएगें? </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-37631203972644318812009-06-02T03:47:00.000-07:002009-06-02T04:01:09.317-07:00मीडिया का फैशन !<div align="justify"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgK6mzJVNaw90vCsrOOkZiXQJHzSxMuhezfAfXHFwsrYw96RDnLyA7WYJEPKHemG4c2t1bfbo1JikbqY401Imk3c-KeyX1mtDxxsvYFp9iIUOyn1DOr-fPa1S-CFuoX7jjsQU3XI4dleJA/s1600-h/channel.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5342680501263169506" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 200px; CURSOR: hand; HEIGHT: 167px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgK6mzJVNaw90vCsrOOkZiXQJHzSxMuhezfAfXHFwsrYw96RDnLyA7WYJEPKHemG4c2t1bfbo1JikbqY401Imk3c-KeyX1mtDxxsvYFp9iIUOyn1DOr-fPa1S-CFuoX7jjsQU3XI4dleJA/s200/channel.bmp" border="0" /></a>पिछले दिनों एक हिंदी न्यूज़ चैनल पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का प्रवक्ता एंकर के सवालों को झेल रहा था। मुद्दा था अभिनेत्री रेखा को मिलने वाले एक पुरस्कार को लेकर मनसे का विरोध। मनसे का युवा प्रवक्ता किसी तरह अपने को सही साबित करने की कोशिश कर रहा था, तभी एंकर का दनदनाता सवाल आया कि आप क्यों रेखा के पीछे पड़े हैं महाराष्ट्र के विदर्भ जाकर आत्महत्या करने वाले किसानों के लिए कुछ क्यों नहीं करते। इससे पहले कि मनसे प्रवक्ता कोई जवाब दे पाता ब्रेक का समय हो चुका था। हालांकि पहली नज़र में मुझे एंकर का ये सवाल बिना संदर्भ का लगा लेकिन विदर्भ, किसानों की आत्महत्या, कालाहांडी में भूख मिटाने के लिए अपने दुधमुहे को बेचना। इस तरह की सामाजिक सरोकार वाले सवाल तथाकथित मुख्य धारा कि इलेक्ट्राॅनिक मीडिया के लिए फैशन या कहें कि दिखावा बन गए हैं। क्योंकि ये टीआरपी दिला नहीं सकते। लेकिन क्या उस समाज में भी ये मुद्दा है या नहीं जहां से ये पैदा हुए हैं। आम चुनाव के सिलसिले में पिछले दिनों महाराष्ट्र के विदर्भ जाने का मौका मिला। इसी सामाजिक सरोकार का मारा मैं था सो बड़ा रोमांचित था कि उस इलाकें में स्टोरी की कोई कमी नहीं होगी जहां पिछले 4-5 सालों में साढ़े तीन हज़ार किसानों ने आत्महत्या की हो। अकोला, अमरावती, यवतमाल, बुलढाणा जैसे इलाकों के गांवों में गया किसानों की कहानियां ढूंढने, लेकिन आश्चर्य कि ये मुद्दा न तो चुनावों में था न ही लोगों के बीच। बुलढाणा के एक गांव चिखली गया जहां कई आत्महत्यायें हो चुकी थीं। मैंने कई <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhrsqS2VfHBpxL8r_rAjP75WhUXIzztAk6S-ABaa0kRc_o6OUf-9RN8LH004XRtNaFiY-fq8uJU2DCgd8UT1jDEl8CnkCsYQxIiMo0oIXz0nKTmtrG_ho9_HbbOYmC2SP3J6by60ld2mUY/s1600-h/mass_farmer_suicide_in_india.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5342681687264291666" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 266px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhrsqS2VfHBpxL8r_rAjP75WhUXIzztAk6S-ABaa0kRc_o6OUf-9RN8LH004XRtNaFiY-fq8uJU2DCgd8UT1jDEl8CnkCsYQxIiMo0oIXz0nKTmtrG_ho9_HbbOYmC2SP3J6by60ld2mUY/s400/mass_farmer_suicide_in_india.jpg" border="0" /></a>गांव वाले से पूछा कि आत्महत्या मुद्दा क्यों नहीं है। जवाब मिला कि सारे उम्मीदवार तो अपने हैं मरने वाले भी अपने ही हैं तो मुद्दा कैसे बने, <span class="">क्या<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPD9JxaWHAJu0IhBCvD-alZGecG0ZS1DAsbiTPEwd10STODreht21O6ckn5_m9zFPu2rWB7NMU7m1acAG0jQq7rVPJnTIRfjBOGC0A-acgzRRW3Ros_iCR4xuwjcmAVan5xegkqbf9uis/s1600-h/mass_farmer_suicide_in_india.jpg"></a></span> ज़रुरत है मुद्दा बनाने की एक लाख मुआवज़ा मिलना था मिल गया। जब इसका मतलब ढूंढा तो पता चला कि ये इलाका कुन्बी मराठा समुदाय का है, जहां दोनों मुख्य उम्मीदवार उसी समुदाय के हैं, ज्यादातर मतदाता उसी समुदाय के तो सब अपने ही हैं। यानी मुद्दा ख़त्म। मुद्दा नहीं तो स्टोरी कैसे करुं।</div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-33549502947501705002009-05-28T05:55:00.000-07:002009-05-28T05:59:07.002-07:00कांग्रेस को वोट क्यों !<div align="justify"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh23HFKNCcVM_Fxrfcyriu7oZ4P-L13LnHkntFAdwCpp4TReauZ_HJYTwBHflwvebOq71GaBlL8ySUxwMc46xYqEP2CucpdcNW5KKfPM2UVjPSt6vRsJrEmknbIG99inVFXIOdvlZB5l20/s1600-h/untitled.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5340858458481459938" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 275px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh23HFKNCcVM_Fxrfcyriu7oZ4P-L13LnHkntFAdwCpp4TReauZ_HJYTwBHflwvebOq71GaBlL8ySUxwMc46xYqEP2CucpdcNW5KKfPM2UVjPSt6vRsJrEmknbIG99inVFXIOdvlZB5l20/s400/untitled.bmp" border="0" /></a>चुनावों के सिलसिले में पिछले दिनों महाराष्ट्र के दौरे पर था। चुनाव परिणाम के दिन यानी 16 मई की शाम में शिवसेना के उद्धव ठाकरे से मुलाकात हुई। मतदाताओं ने मुंबई की सभी 6 सीटों से शिवसेना का सफाया कर दिया था। हर जगह कांग्रेस ही कांग्रेस छाई थी। उद्धव हैरान परेशान थे। उसने कहा कि उन्हें आश्चर्य है कि जिस शहर में 26/11 हुआ हो वो भी कांग्रेस गठबंधन की सरकार रहते केंद्र में भी और राज्य में भी वहां लोग कांग्रेस को कैसे वोट दे सकते हैं। जिस तरह से मुंबई में आतंकी हमले के बाद मुंबई और देश के लोगों ने जबरदस्त गुस्सा ज़ाहिर किया था वो गुस्सा क्या ग़ायब हो गया। याद रखिए मुंबई में जिन लोगों ने Enough is Enough कहा था वही लोग 30 अप्रील को वोट देने भी न निकल सके। मुंबई में 1977 के बाद सबसे कम मतदान हुआ था। 50 फीसदी से भी कम। चुनावी विशलेषक कहते भी हैं कि जब मतदान कम होता है तो वो सत्ता के पाले में जाता है। हुआ भी यही। तो आख़िर उद्धव की चिंता का क्या जवाब है। लोगों ने क्यों कांग्रेस को वोट दिया। एक सीधा का जवाब ये हो सकता है कि आतंकी घटनाओं के लिए जनता ने कांग्रेस को तो ज़िम्मेदार नहीं माना। लेकिन आतंक से लड़ने के लिए मतदाताओं ने शिवसेना और भाजपा को भी विकल्प तो नहीं ही माना है। आप क्या सोचते हैं...</div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-50582337598108545232009-03-18T21:11:00.001-07:002009-03-18T22:43:52.986-07:00विश्व बैंक की पसंद बिदेसिया !<div align="justify"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioTkESJsMpqrVHbjmp3uAhS2-stUbzlKrYhpWaGMTv8ivqxVHlkVpEJjAMkAS4Kvhl2v_SXVz8KqWyH4-9-miUInhY8iBAlAAHvNViRVfqc1P3OGj2whONWBgfEC-h28Vg2Q_OLRXtF6o/s1600-h/dharavi_slum.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5314746861143426770" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 209px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioTkESJsMpqrVHbjmp3uAhS2-stUbzlKrYhpWaGMTv8ivqxVHlkVpEJjAMkAS4Kvhl2v_SXVz8KqWyH4-9-miUInhY8iBAlAAHvNViRVfqc1P3OGj2whONWBgfEC-h28Vg2Q_OLRXtF6o/s320/dharavi_slum.bmp" border="0" /></a> Slumdog मिलनियर लगता है सचमुच फिरंगियों को पसंद आ गई है। अब तो विश्व बैंक भी इसे पसंद करने लगा है। ख़ैर, ये बात विस्तार से थोड़ी देर में। आपको शायद भोजपूरी साहित्यकार भिखारी ठाकुर के बिदेसिया की याद हो। कितने दर्द दिए बिदेसिया ने। कितने घर उजाड़े। बिहारियों की ही बात करें तो कभी वो दिल्ली में रिक्शा चलाते गालीयों पर गालियां खाते रहते हैं। कभी पंजाब के खेतों में मज़दूरी करते दिख जाते हैं। सुना है कश्मीर के उन इलाक़ों में जहां कोई जाने को तैयार नहीं होता वहां बिहारी मज़दूर सड़क बनाने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे में एक सरकारी <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikF3C5ThAfOOWK4tJXZBbSp67hFnaWSM_7huzEmS2hwjArcmVJhdASJ6yegyLyxFoUXgr9jrA2WE54eyhASyTbhr5jw3qU5HMjftKQC_YikrCeAX3G3PLcDkep846DN5tt10d1GtlyIh4/s1600-h/nre.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5314747099892002514" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 230px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikF3C5ThAfOOWK4tJXZBbSp67hFnaWSM_7huzEmS2hwjArcmVJhdASJ6yegyLyxFoUXgr9jrA2WE54eyhASyTbhr5jw3qU5HMjftKQC_YikrCeAX3G3PLcDkep846DN5tt10d1GtlyIh4/s320/nre.bmp" border="0" /></a>योजना आई, नरेगा यानी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना। इस योजना की सफलता-असफलता और भ्रष्टाचार पर लंबी बहस हो सकती है। लेकिन, कई इलाक़ों में इसने अंतर तो पैदा किया है। पंजाब में मज़दूर खोजे नहीं मिल रहे हैं। राजस्थान, आंध्रप्रदेश, बिहार के कई इलाक़ों में रोटी के लिए अपना घर-दुआर न छोड़ना पड़े इसका विकल्प नरेगा ने तो दिया ही है। विश्व बैंक को ये बात अच्छी नहीं लगी। उनका कहना है कि गांव से शहर में लोगों का आना तरक्की की निशानी है। उन्हें शहरों में आने से रोकना नहीं चाहिए, इसलिए नरेगा जैसी योजनाएं भारत के आर्थिक विकास में बाधक हैं। मुझे लगता है, कि विश्व बैंक को शहरों में बढ़ते जा रहे स्लमों यानी झोपड़ पट्टियों और गंदे नालों से प्यार हो गया है। शायद इसलिए उन्हें फिल्म स्लमडाॅग मिलिनियर भी पसंद आई होगी। गांवों से शहरों में जितना पलायन उतने स्लम। जितने स्लम उतनी तरक्की। पता नहीं विश्व बैंक आगे क्या करेगी। शायद, भारत सरकार को कुछ फंड दे दें नरेगा रोकने के लिए। </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-48504118189146192922009-03-17T10:38:00.000-07:002009-03-17T10:51:18.967-07:00...अगला प्रधानमंत्री ?<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxuiaRP-jnmKBWVlUjeFyE7YQdsEgP3Zf16ZNpXON7i2X7xm6b-c6FzHl6GdwcCBHQesE3hQoOGhVOxUcEFZ3d48D1xyHwiaMFfD6uTspJMt4qwDoVgRrswqZGJMIdQsuwSzLv3-Hjoxo/s1600-h/man.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5314213616190845330" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 218px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxuiaRP-jnmKBWVlUjeFyE7YQdsEgP3Zf16ZNpXON7i2X7xm6b-c6FzHl6GdwcCBHQesE3hQoOGhVOxUcEFZ3d48D1xyHwiaMFfD6uTspJMt4qwDoVgRrswqZGJMIdQsuwSzLv3-Hjoxo/s320/man.jpg" border="0" /></a> क्या आपको लगता है कि आज देश के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा। अगर आपको ऐसा लगता है तो मीडिया को धन्यवाद दीजिए। जोड़-तोड़ जारी है, प्रधानमंत्री के इतने दावेदार कभी भी नहीं होगें जितने की इस बार हैं। चलिए, ये तो पुरानी बात है कुछ नया कहते हैं। कांग्रेस जानती है कि राहुल बाबा में दम नहीं है, चाहे वो कितनी रातें दलितों के घर बिता लें। राहुल गांधी अपने पापा की याद तो दिलाते हैं लेकिन वोट नहीं दिला पाते। मैडम सोनिया गांधी की तारिफ करनी होगी कि यूपीए अब तक चलती रही। लेकिन, वोटों और सीटों का क्या। वो बढ़ेगीं। बढ़े ना बढ़े घटेगीं ज़रुर, यो तो साफ है। मनमोहन सिंह किंग तो बने हैं लेकिन क्या देश ऐसे प्रधानमंत्री को आगे भी देखता रहेगा जो हमेशा ही बेचारे से लगते <span class="">हैं।<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEguJ67truRFO0VPklm4RMtD_zNJxjYJsEhcpJMU4aw6EZNVPIjy1zCQGRIMozAbF9W2LdvGgQnLlkyrR0HfXpv-ToINCf8dAbOinkgQP2xLoQv5KPf55FgjG6Fat4s3Ma9PomWgsqARBAY/s1600-h/225px-Narendramodi.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5314215213907564722" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 225px; CURSOR: hand; HEIGHT: 151px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEguJ67truRFO0VPklm4RMtD_zNJxjYJsEhcpJMU4aw6EZNVPIjy1zCQGRIMozAbF9W2LdvGgQnLlkyrR0HfXpv-ToINCf8dAbOinkgQP2xLoQv5KPf55FgjG6Fat4s3Ma9PomWgsqARBAY/s320/225px-Narendramodi.jpg" border="0" /></a></span> प्रियंका गांधी में दम है, वो दुर्गा दादी की याद भी दिलाती हैं, लेकिन पूरी तस्वीर में वो कहीं नहीं। ये कांग्रेस का दुर्भाग्य है। प्रणव दा भी हैं, लेकिन कोई चाह कर भी उनका नाम नहीं ले रहा। इतनी हिम्मत नहीं। चलिए, दूसरों की भी बात करें। आडवाणी ताल ठोक तो रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। गुजराती मोदी बड़े दावेदार हैं लेकिन कोई उनकी बात नहीं करता, हिम्मत ही नहीं। ये भाजपा का दुर्भाग्य है। दरअसल, हम सब मुंह चुराते रहते हैं सच से। कहते हैं कि शीर्ष पर हमेशा जगह खाली रहती हैं, दुर्भाग्य है कि ये भी सच है...मेरा भी मानना है कि अभी सवाल तो यही है कि प्रधानमंत्री अगला कौन होगा।...चलिए इंतज़ार करते हैं 16 मई का...Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-33964299562433050302009-03-12T22:39:00.000-07:002009-03-12T22:43:50.469-07:00Slumdog पर जागरुकता चाहिए...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_oyf6lO0qB6P2WSb_zQvyZ_OYPofFKAxB2a1vhBAxPWXj95XSTeqffessjQjTrs78VYHgFW6mG1yr6YedI88YMBdsrQac5K4OYpvH8BTBdKHulKAQb165Ru7YxZokTiHo8R3QX9hiaNw/s1600-h/untitled.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5312543686260775010" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 216px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_oyf6lO0qB6P2WSb_zQvyZ_OYPofFKAxB2a1vhBAxPWXj95XSTeqffessjQjTrs78VYHgFW6mG1yr6YedI88YMBdsrQac5K4OYpvH8BTBdKHulKAQb165Ru7YxZokTiHo8R3QX9hiaNw/s320/untitled.bmp" border="0" /></a> पंचशील की लालबत्ती पर जैसे ही मैंने अपनी बाइक को ब्रेक लगाई कई स्लमिए बड़ी गाड़ियों जैसे इनोवा, टोयोटा पर लूझ पड़े। साफ कर दूं कि गंदे संदे छोटे बच्चों को एक एक रुपए मांगते देख अब सीधे स्लमडॉग मिलिनेयर की ही याद आती है। इसलिए इनको स्लमिए कह दिया। इन स्लमियों को देखकर बड़ा अफसोस भी हुआ। अरे, कहां तो स्लमडॉग को Oscar मिल गया, एक नहीं दो नहीं वो भी आठ, और ये नामुराद अब भी एक-एक रुपया मांग रहे हैं। अवेयरनेस की कमी है क्या करें। ख़ैर, लालबत्ती हरी हुई और आगे बढ़े, ऑफिस पहुंचा। Boos से मैने ऐसे ही पूछ लिया, सर आपने Slumdog..देखी क्या। उन्होंने बड़ा दार्शनिक जवाब दिया...हां देखी तो है लेकिन अलग अलग, स्लम अलग, डॉग अलग और मिलिनियर को अलग। क्या दर्शन है। लेकिन ये अलग अलग हम पहले भी देखते रहे हैं, पर डैनी बाॅयल ने इन सबको एक साथ कर दिया। दर्शन छोड़ो यथार्थ को जानों...इन स्लमियों की आदत जाएगी कब। क्यों नहीं ये भी कोई डायेरेक्टर को ढूंढते...विदेशी न सही देसी ही सही। या कोई अवेयरनेस कैंपेन चलाया जाए, कि एक एक रुपया छोड़ो और किसी रियलिटी शो पर नज़र रखो। मोबाइल तैयार रखो। दनादन एसएमएस करते रहो...किसी न किसी दिन कोई लतिका मिल ही जाएगी...मेरा मतलब है लतिका के साथ तो करोड़ों तो आएगें ही।Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-59337277895064137772008-12-23T02:10:00.000-08:002008-12-23T02:12:58.830-08:00निशान-ए-जुत्ता<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEju668kf0gn0MrL6ewlx9QWg7Ei8qI52Q1jtu6h5pOwpCkL6tPWtK7nxFTJvRBwRdcKL6zrCOxw4i2j4IJffVpa4VIaLNVPnl4aqbMdblKrwFvL3Au24MtR-aHBuOwG6grD_HaG93bL4Bg/s1600-h/JOOTA.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5282926192527836978" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 286px; CURSOR: hand; HEIGHT: 214px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEju668kf0gn0MrL6ewlx9QWg7Ei8qI52Q1jtu6h5pOwpCkL6tPWtK7nxFTJvRBwRdcKL6zrCOxw4i2j4IJffVpa4VIaLNVPnl4aqbMdblKrwFvL3Au24MtR-aHBuOwG6grD_HaG93bL4Bg/s320/JOOTA.jpg" border="0" /></a> निशाना लगे न लगे लेकिन ज़ख्म तो हो ही जाता है, चोट तो लग ही जाती है। क्या करें जूता तो चीज ही ऐसी है। मुंतज़ीर अल ज़ैदी का जूता भी कुछ अलग नहीं था। अफवाह तो ये भी है कि श्रीमान ज़ैदी पिछले कई दिनों से जूता निशाने पर मारने की प्रैक्टिस कर रहे थे। लेकिन लगता है उन्होंने मन लगा कर क्रिकेट नहीं खेली। अगर खेली भी तो गुरु ग्रेग जैसा कोच नहीं मिला होगा। ख़ैर, जूता तो निशाने पर नहीं लगा, लेकिन दाद देनी होगी महामहीम बुश की। इतने फुर्तीले। कानों के पास गुज़रते गुज़रते बुश साहब ने ये भी देख लिया कि जूता 10 नंबरी है। यानी, आंखें भी शरीर जितनी चपल।<br />अब निशाने का क्या है। लगी, लगी नहीं लगी। बात दरअसल में ये है कि जब अमेरिका का सुरक्षा विभाग पेंटागन में इराक़ पर हमला करने की योजना बना रहा था तो एक सूची बनाई गई। सूची में सबसे ऊपर उन ठिकानों का ज़िक्र था जिन पर सबसे पहले अमेरिकी बमबाज़ों को ढाहना था। सूची के अंत में इराक़ी तेल के कूएं, वहां का मशहूर संग्रहालय, अस्पताल, रिहाइशी इलाक़े वैगरह शामिल थे। लेकिन, जब अमेरिकी एफ-16 गरजे तो सबसे पहले निशाने वही इमारतें थीं जिन्हें या तो निशाना नहीं बनाना था या फिर अंत में काफी मुश्किल परिस्थितियों में नेस्तेनाबूद करना था। लेकिन हुआ बिलकुल उलटा। क्या करें हो सकता है निशाना न लगा हो। या हो सकता है कि अमेरिकी पायलटों ने हड़बड़ी में सूची उलटी पकड़ ली हो। अब क्या करें बड़े बड़े लक्ष्य को पाने के लिए छोटी मोटी क़ुर्बानियां तो देनी ही पड़ती हैं।Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-71293424838976227062008-12-19T21:15:00.000-08:002008-12-19T21:18:35.659-08:00ख़ुशी है या ग़म<div align="justify"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgF_47g1RjOxb8G7PQfLAzbeq1BrLxuFktUVEN3N8YKrCQyIf38_7G3dyPJu85kk30DkWnbq1hMny05jrip-euyEO7ipwEowv9DhgQaQFQU4rJcvgRwUxetTawBUvkGOCsV-x1IwoJzNLA/s1600-h/FINAL.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5281736957420668082" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 311px; CURSOR: hand; HEIGHT: 262px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgF_47g1RjOxb8G7PQfLAzbeq1BrLxuFktUVEN3N8YKrCQyIf38_7G3dyPJu85kk30DkWnbq1hMny05jrip-euyEO7ipwEowv9DhgQaQFQU4rJcvgRwUxetTawBUvkGOCsV-x1IwoJzNLA/s320/FINAL.jpg" border="0" /></a> अभी गुरुवार की ही बात है। लोकसभा में आर्थिक हालत पर हो रही चर्चा का जवाब देते हुए पी.चिदंबरम ने साफ किया कि मौजूदा विकास दर 7 फीसदी रहेगी। जो अभी हाल तक साढ़े सात फीसदी तक बताई जा रही थी। ऐसे में अचानक ही उम्मीद की कई किरणें दिखने लगी हैं। पिछले 6 सफ्ताह से कम होते होते महंगाई 7 फीसदी से भी कम पर आ गई। लगातार गिर रहा रुपया भी ड़ेढ़ महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया। दूसरी तरफ शेयर बाजार भी पीछे नहीं रहा। पांच सप्ताह में बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स एक बार फिर से 10 हज़ार के आंकड़े के आसपास है। पिछले जुलाई में ही आठ आठ आंसू रुलाने वाला तेल की कीमतें पिछले चार सालों में सबसे निचले स्तर पर आ गया है। पिछले दिनों ही होम लोन में भी कमी की गई है। वहीं सरकार ने भी 30 हज़ार करोड़ से भी ज्यादा का पैकेज दिया है। एक्साईज ड्यूटी यानी उत्पाद करों में भी 4 फीसदी कमी की गई है। कारों और मोटरसाइकलों की कीमतों में भारी गिरावट देखी गई है। यानी ख़ुश होने के कई मौके़। लेकिन ज़रा रुकिए। याद रखिए कि पिछले 5 सालों में पहली बार भारत की निर्यात बढ़ने की रफ्तार निगेटिव हो गई है। पिछले अक्टूबर में निर्यात 15 फीसदी तक घट गया। अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के देशों में मंदी पैदा होने से भारत के निर्यात कारोबार पर असर अब साफ दिख रहा है। क्योंकि जीडीपी में सामानों के निर्यात की हिस्सेदारी 17 फीसदी तक है। रुपए की कीमत भी इस साल 22 फीसदी कम हुई है। सरकार का ही एक सर्वेक्षण ये बताता है कि पिछले अगस्त से अक्टूबर तक मंदी के असर ने 65 हज़ार से भी ज्यादा नौकरियां छीन ली हैं।<br />दूसरी तरफ सरकार को घाटे की भी चिंता है। 70 हज़ार करोड़ से भी ज्यादा का किसान कर्ज माफी, छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करना उद्योगों को लगातार कई तरह के कर छूट ने सरकारी ख़जाने पर बड़ा असर डाला है। नतीजा, राजस्व और राजकोषिय घाटा नियंत्रण से बाहर ही जा रहे हैं। यानी रास्ते में सिर्फ खुशियों के फूल ही नहीं। </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-3631544253735856622008-11-28T03:16:00.000-08:002008-11-28T03:21:49.957-08:00कब तक सियासी आतंकवाद ?<div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGb4PhLEQhbyX9kTiUUb7QXHFVO_0TFTXxWQPMFpm7C5sw02gAYqBLcl43taru_f5h16LxeEQOkx9Khh82rwHNTfj1T8AbCyVcGui6_tUEDdLUlz0g4f84K-qOQkAOP4BDwNyNlMlIQ88/s1600-h/WWW.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5273666635627071602" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 396px; CURSOR: hand; HEIGHT: 289px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGb4PhLEQhbyX9kTiUUb7QXHFVO_0TFTXxWQPMFpm7C5sw02gAYqBLcl43taru_f5h16LxeEQOkx9Khh82rwHNTfj1T8AbCyVcGui6_tUEDdLUlz0g4f84K-qOQkAOP4BDwNyNlMlIQ88/s320/WWW.jpg" border="0" /></a> देश ने कई आतंकी घटनाओं को अब तक अपना सबकुछ लुटाकर अपनी छाती पर झेला <span class="">है।</span> लेकिन मुबंई में कुछ और ही देखने को मिला। देश का सबसे बड़ा शहर बंधक बना। ये हमला पहले हुए आतंकी घटनाओं से मीलों आगे का था। ज्यादा घातक और ज्यादा डराता हुआ। कहने की ज़रुरत नहीं कि हमारी तैयारी मीलों पीछे थी। घटना के लगभग 24 घंटों बाद जो अखबारों में एक विज्ञापन छपा कि ये घटनाएं सरकार की कमज़ोरी के कारण हुई। दिल्ली के अख़बारों में छपा ये विज्ञापन देश के प्रमुख विपक्षी पार्टी ने छपवाया था। यहां भी ये कोई बड़ी बात नहीं कि देश में अभी कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं।<br />अमेरिका में आज से लगभग 8 साल पहले एक बड़ा आतंकी हमला हुआ। कई आतंकी संगठन लगातार कोशिशें <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhM7YMNEdSPQcMinpLFm6D9X9UlLQ0UpswERIe1PB_gk6kXzN2ooVyHvgig1eJgfnZIcA4D1racbMLt0o4jWWaTfKwmRLdgNxYUqLuvGMZE7ttkq0Ahg0xdsdtnOJlegliMomDm4ENz1RE/s1600-h/victim-carry-cp-250-5902551.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5273666896624957650" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 250px; CURSOR: hand; HEIGHT: 191px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhM7YMNEdSPQcMinpLFm6D9X9UlLQ0UpswERIe1PB_gk6kXzN2ooVyHvgig1eJgfnZIcA4D1racbMLt0o4jWWaTfKwmRLdgNxYUqLuvGMZE7ttkq0Ahg0xdsdtnOJlegliMomDm4ENz1RE/s320/victim-carry-cp-250-5902551.jpg" border="0" /></a>करते रहे धमकियां देते रहे लेकिन कोई भी इन 8 सालों में कुछ नहीं कर सका। दुसरी तरफ हम लगातार आतंकी हमले होते रहे सिर्फ इस साल के पहले 6 महीनों की बात करें तो हम पर 64 आतंकी हमले हो चुके हैं। बदले में हर कोई दावे करने के सिवा कुछ नहीं कर सका। सत्ता से लेकर विपक्ष तक।<br />अमेरिका में जब नौ ग्यारह हुआ तो सारे राजनैतिक मतभेद भुला दिए गए क्या डेमोक्रेट क्या रिपब्लिकन। लेकिन हम क्या कर रहे हैं। किसे जिम्मेदार ठहरा रहे हैं किस पर आरोप लगा रहे हैं। कभी कड़े क़ानून को लेकर बहस करते हैं जिसका कोई अंत नहीं होता न ही समाधान। कोई पुलिस मुठभेड़ को फर्जी बताता है। कोई कहता है सरकार आतंक पर नर्म रुख अपना रही है। कोई आरोप लगाता है कि आतंकियों की मेहमाननवाज़ी करके भेजने वाले और विमान के कंधार सुरक्षित पहुंचाने वाले तो कोई और थे। ख़ूनी खेल को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक आतंक में बांटने की कोशिशें होती है। संघिय जांच ऐजेंसी पर भी राजनीति। पुलिस के आधुनिकिकरण पर राजनीति। हम कब वोट और कुर्सी की चिंता छोड़कर देश की चिंता करेगें। कब तक सियासी आतंकवाद का शिकार होते रहेगें ? </div>Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8560610375134680551.post-12912594565069606972008-11-23T22:10:00.000-08:002008-11-23T22:45:41.985-08:00<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8AsFzmlmDqlHOPqEzdmgL-PKc1lmEetsJ_RuyCGtzGjgcbdvduL2YfqUCZBDxVobQouR3q5TAHolFqaD14ngSZ4VLLtQT5zIxpyLGEVTDh94_WOCkaWAsjqqhA-rNJ8MDzDeA5py11bE/s1600-h/ca.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5272111451704896930" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 430px; CURSOR: hand; HEIGHT: 216px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8AsFzmlmDqlHOPqEzdmgL-PKc1lmEetsJ_RuyCGtzGjgcbdvduL2YfqUCZBDxVobQouR3q5TAHolFqaD14ngSZ4VLLtQT5zIxpyLGEVTDh94_WOCkaWAsjqqhA-rNJ8MDzDeA5py11bE/s320/ca.jpg" border="0" /></a> पिछले दिनों वित्त मंत्री ने उद्योगपतियों को कहा कि कुछ समय के लिए अपनी कीमतें कम करें। कारण था कि मांग बढ़ सके। चिदंबरम ने ख़ासकर होटल, एयरलाइन और रियल एस्टेट के कारोबारियों और कार और दुपहिया निर्मातोओं से ये बातें कहीं। क्योंकि उद्योगपतियों और मीडीया ने इस तरह का माहौल बना दिया है कि सब के सब डरे हैं। ऐसी हालात में कोई भी कर्ज लेकर ख़रीदारी नहीं करना चाहता। इस वर्ष सात फीसदी के ज्यादा का विकास दर साफ बताता है कि बाज़ार में काफी मांग है।<br />लेकिन, उद्योग जगत ने चिदंबरम के सलाह को न सिर्फ नकारा उल्टे सरकार पर ही आरोप लगा दिए। उद्योगों की तरफ से कहा गया कि दाम घटाने के बजाए सरकार मांग को बढ़ाने पर ज़ोर दे।<br />मैं सवाल पूछता हूं कि सीआरआर में साढ़े तीन प्रतिशत, रेपो रेट में डेढ़ फीसदी और एसएलआर में एक फीसदी की कमी के बाद भी बैंक कर्ज देने को क्यों तैयार नहीं हैं। बाज़ार में लगभग दो लाख करोड़ आने के बाद भी उसका असर न तो मांग बढ़ाने पर पड़ा न तो दाम घटाने पर। बैंक पैसों पर जम कर बैठे हैं। कहा जा रहा है कि रियल ईस्टेट पर मंदी की सबसे ज्यादा मार पड़ रही है, जबकि आंकड़े इसे बिलकुल झूठ साबित करते हैं। रियल ईस्टेट का मार्जिन सितंबर,2007 में 42.3 फीसदी था जो सितंबर, 2008 में 49.6 फीसदी तक बढ़ा। इसे आप क्या कहेगें। पी. चिदंबरम ने भी कहा है कि चालू वित्त वर्ष में कंपनियां औसतन 30 फीसदी का लाभ कमा रहे हैं। अब आप ही बताएं ये कैसी मंदी है, जहां चिंता इस बात की है कि अरे मुनाफा कम हो गया। ऐसे में मार्क्स की सुपर प्रॉफिट वाली बात याद आती है।Omprakash Dashttp://www.blogger.com/profile/04901885794133782620noreply@blogger.com1