आम बजट की उलटी गिनती शुरु हो गई है। अटकलबाज़ियों का दौर भी जारी है। सब की नज़र इस पर कि इस बार श्रीमान चिदंबरम के पिटारे से क्या निकलेगा। बजट का जोड़ घटाव गुणा भाग काफी हद तक इस पर निर्भर करता है कि अर्थव्यवस्था की हालत क्या है। उद्योग और सेवा क्षेत्र जो तेज़ विकास के अगुआ बने हुए थे वो थोड़े सुस्त नज़र आ रहे हैं। इसके पीछे है कई घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कारण। इन कारणों में रुपए की मूल्य वृद्धि और महंगाई से लेकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था का संकट भी है।
रिज़र्व बैंक ने अपने पिछली मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए कहा कि चालू वित्तिय वर्ष में सकल घरेलू उत्पादन के बढ़ने की रफ्तार 8-5 फीसदी के आसपास रह सकती है। वित्तिय वर्ष 2007---08 के पहले 6 महीने में सकल घरेलू उत्पादन 9-1 फीसदी की गति से बढ़ी जबकि इसके पहले साल यानी साल 2006---07 में ये 9-9 फीसदी की गति से बढ़ रहा था। कहा जा रहा है कि हो सकता है कि चालू वित्तिय वर्ष में जीडीपी ग्रोथ पिछले साल की तुलना में धीमी रहे। चिंता की बात ये है कि कई ऐजेंसियां विदेशी पूंजी के भी बाहर जाने की आशंका जता रही हैं। युरोपिए अमेरिकन और एशियाई अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंकाओं के बीच भारत पर भी इसका असर दिख रहा है। दूसरी तिमाही के नतीजे भी थोड़ा निराश करते हैं। पिछले वित्तिय साल के दूसरी तिमाही में जीडीपी की बढ़त 10-2 फीसदी रही थी जो इस बार 8-9 फीसदी तक ही रहने की संभावना है। कहा जा रहा है कि अमेरिका में मंदी की आशंका से भारत के साथ साथ कई एशियाई देशों के निर्यात पर असर ज़रुर दिखेगा।
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