27 अक्टूबर, 2008

इसलिए मनाएं दिवाली...

क्या आपको लगता है कि चारो तरफ मंदी की बेचैनी, इस्लामी और हिंदु आतंकवाद, संसद का ना चलना, शेयरों का गोता लगाना.... ब्ला ब्ला.... चीज़ें आपको परेशान कर रही है। हर जगह दिवाली में दिवाला का भोंपू बज रहा है। कोई कैसे मनाए दिवाली ? मैं बताता हुं क्यूं और कैसे मनाएं दिवाली। मैं तो ख़ैर अपने घर से हज़ार किलोमीटर दूर भी दिवाली मनाने के कई कारण देखता हूं। पहली काफी कम तनख्वहा मिल रही है लेकिन नौकरी सलामत है यानी पिज़्जा भले न मिले दाल रोटी सलामत है। क्या आपके साथ भी ऐसा है। मंदी तो है लेकिन बसों के टिकटों के दाम नहीं बढ़े हैं।
महंगाई की दर नीचे ही आ रही है उपर से तेल सस्ते होने की भी ख़बर है। सस्ता न भी हो तो कीमतें बढ़ेगी नहीं ये तो तय है। क्यों हैं न ये भी एक कारण ख़ुश होने का। सरकार के बड़े बड़े लोग कह रहे हैं कि मार्च आते आते महंगाई 7 फीसदी तक आ जाएगी। चलो अच्छी बात है।
आतंकवाद के नाम पर बहुत हिंदु मुस्लिम हो रहा है। चलों प्रज्ञा ठाकुर के धरे जाने के बाद सबने चैन की सांस ली है। कम से कम मेरे जैसे इंसान ने, जो इस बात पर रात दिन सोच रहा था कि हमारे मुस्लिम भाईयों को कैसा लगता होगा जब उन्हें सिर्फ और सिर्फ दाढ़ी वाले आतंकवादी के नज़र से देखा जा रहा था। अब सिक्के का दूसरा पहलू भी सबके सामने है।
कुछ लोग राजनीति को लेकर निराश हो सकते हैं। संसद का एक हफ्ते का सत्र भी ठीक से न चल सका। लेकिन, जिस तरह संसद में उत्तर भारतीयों पर हमले को लेकर सांसदों ने दबाव बनाया उसी का नतीज था कि देशमुख सरकार कदम उठाने को बाध्य हुई। वरना वो तो ये सोच सोच कर ख़ुश हो रहे थे कि चलो बाला-उद्धव ठाकरे के वोट कट रहे हैं। ये राज (गुंड़ाराज) चलने दो। संसद में सोमदा के आंसु ये बताने के लिए काफी थे कि कैसे सिद्धांतों का पहाड़ा रटने वाले वामदल अपनी सारी शक्ति सिर्फ एक व्यक्ति को टारगेट करने में लगा सकते हैं। जबकि ये संसदीय इतिहास जानता है कि कैसे इस व्यक्ति (सोमनाथ चटर्जी) ने संसदीय गरिमा को क़ायम रखने के लिए अपनी राजनैतिक करियर दांव पर लगा दिया।
शेयर बाज़ार भले ही हर रोज़ नीचे ही नीचे जाने का रिकॉर्ड बना रहा हो लेकिन भारत अभी भी 7 फीसदी से ज्यादा रफ्तार से तरक्की करने को तैयार दिखता है। कई लोगों को दलाल स्ट्रीट की मतवाली चाल ने ख़ाकपति बना दिया। कुछ ने तो आत्महत्या तक कर ली। लेकिन सोचिए, अमेरिका का हाल। आज क़रीब 10 लाख लोग सब प्राईम संकट के कारण अपना घरबार छोड़ने को मजबूर हो गए। ये लोग पार्कों में तंबू तक लगाने को मजबूर हैं। क्या हमारे लिए राहत की बात नहीं।
खेलों की बात करें तो क्रिकेट टीम ऑस्ट्रेलिया को सीरीज़ में पछाड़ने के क़रीब है तो उधर विश्वनाथन आनंद क्रेमनिक को धूल चटा विश्व चैंपियन बनने के बिलकुल पास हैं।
तो जाईये, अपनी गली और सड़क पर और सबसे बड़ा वाला बम फोड़िए चाहे कोई कुछ भी कहे। शायद ये धमाका औरों को भी जगा दे...दिवाली की शुभकामनाएं।

01 अक्टूबर, 2008

सॉरी अंकल सैम !

अमेरिकी कांग्रेस ने भारत-अमेरिका असैनिक परमाणु समझौते को पास कर दिया। मनमोहन जी को बधाई हो बधाई। लेकिन, ख़ुशियां मनाने के पहले कुछ सवालों पर एक नज़र दौड़ा लें।
ऐसा क्या हुआ कि इस समझौते पर बहस के दौरान अमेरिकी संसद के सदस्य एडवर्ड मार्केय और उनकी टीम जो इस समझौते को पानी पी पी कर कोस रहे थे। अचानक से पलटी खा ली, और समझौते को अंतिम मंजूरी देने वाले बिल के समर्थन में आ गए। भारत की ऊर्जा सुरक्षा को लेकर इतनी चिंता "क्यों" ?
कांग्रेस में किसी भी बिल पर चर्चा के लिए कम से कम 30 दिनों का समय चाहिए होता है लेकिन इसमें भी भारत को छूट दी गई। "क्यों" ?
एनएसजी में कई देश आख़री वक्त तक भारत को छूट देने को लेकर विरोध करते रहे, फिर अचानक रात भर में सबकुछ बदल गया। कैसे "क्यों" ?
जब सोचता हूं, तो ऐसे कई "क्यों" अचानक से कौंधने लगते हैं।
भारत में अमेरिका से जो पिछला कारोबारी मिशन आया था उसमें एक बड़ी संख्या उन लोगों की थी जो न्युक्लियर क्षेत्र में अपना कारोबार करते हैं। ये संयोग "क्यों" ?
भारत सरकार साल 2020 तक 20 हज़ार मेगावाट बिजली उत्पादन के लक्ष्य की बात करती रही है, अब अचानक 40 हज़ार मेगावाट की बात हो रही है, "क्यों" ?
एनएसजी में छूट के बाद भारत ने परमाणु संयंत्र की ख़रीद बिक्री के लिए कई देशों से बातचीत शुरु कर दी। तभी कोंडालीजा राइस ने भारत को फटकारा। कहा कि " भारत ऐसा कुछ भी ऐसा न करे जिससे अमेरिकी कंपनियों को नुकसान हो"
मैं सोच रहा हूं, इसका क्या मतलब ? हम किसी से भी बात करें किसी से भी समझौता करें उससे मैडम कोंडालीज़ा जी और अंकल सैम को क्या मतलब ?
लो ऐसा सोचना था नहीं कि बकरा दाढ़ी डोलाते हुए अंकल सैम सपने में टपक पड़े और लगे समझाने (धमकाने)। अबे इतनी मेहनत हमने क्या दूसरों को मलाई खिलाने के लिए की है। हमारे जानकार कहते हैं कि अगले 20 सालों में परमाणु बिजली पैदा करने के लिए भारत के साथ 4 लाख करोड़ तक का कारोबार होगा। भारत में व्यापारियों की संस्था सीआईआई कहती है कि अगले पंद्रह सालों में सिर्फ 20 रियक्टर लगाने में ही 1 लाख 20 हज़ार करोड़ रुपए इधर से उधर हो जाएगें। अब बता इतने सारे "क्यों" का मतलब समझ में आया।
अंकल सैम सपने से जाते जाते ये हिदायत दे गए कि इसे ब्लॉग में मत लिखना। सॉरी अंकल सैम !