01 अक्तूबर, 2008

सॉरी अंकल सैम !

अमेरिकी कांग्रेस ने भारत-अमेरिका असैनिक परमाणु समझौते को पास कर दिया। मनमोहन जी को बधाई हो बधाई। लेकिन, ख़ुशियां मनाने के पहले कुछ सवालों पर एक नज़र दौड़ा लें।
ऐसा क्या हुआ कि इस समझौते पर बहस के दौरान अमेरिकी संसद के सदस्य एडवर्ड मार्केय और उनकी टीम जो इस समझौते को पानी पी पी कर कोस रहे थे। अचानक से पलटी खा ली, और समझौते को अंतिम मंजूरी देने वाले बिल के समर्थन में आ गए। भारत की ऊर्जा सुरक्षा को लेकर इतनी चिंता "क्यों" ?
कांग्रेस में किसी भी बिल पर चर्चा के लिए कम से कम 30 दिनों का समय चाहिए होता है लेकिन इसमें भी भारत को छूट दी गई। "क्यों" ?
एनएसजी में कई देश आख़री वक्त तक भारत को छूट देने को लेकर विरोध करते रहे, फिर अचानक रात भर में सबकुछ बदल गया। कैसे "क्यों" ?
जब सोचता हूं, तो ऐसे कई "क्यों" अचानक से कौंधने लगते हैं।
भारत में अमेरिका से जो पिछला कारोबारी मिशन आया था उसमें एक बड़ी संख्या उन लोगों की थी जो न्युक्लियर क्षेत्र में अपना कारोबार करते हैं। ये संयोग "क्यों" ?
भारत सरकार साल 2020 तक 20 हज़ार मेगावाट बिजली उत्पादन के लक्ष्य की बात करती रही है, अब अचानक 40 हज़ार मेगावाट की बात हो रही है, "क्यों" ?
एनएसजी में छूट के बाद भारत ने परमाणु संयंत्र की ख़रीद बिक्री के लिए कई देशों से बातचीत शुरु कर दी। तभी कोंडालीजा राइस ने भारत को फटकारा। कहा कि " भारत ऐसा कुछ भी ऐसा न करे जिससे अमेरिकी कंपनियों को नुकसान हो"
मैं सोच रहा हूं, इसका क्या मतलब ? हम किसी से भी बात करें किसी से भी समझौता करें उससे मैडम कोंडालीज़ा जी और अंकल सैम को क्या मतलब ?
लो ऐसा सोचना था नहीं कि बकरा दाढ़ी डोलाते हुए अंकल सैम सपने में टपक पड़े और लगे समझाने (धमकाने)। अबे इतनी मेहनत हमने क्या दूसरों को मलाई खिलाने के लिए की है। हमारे जानकार कहते हैं कि अगले 20 सालों में परमाणु बिजली पैदा करने के लिए भारत के साथ 4 लाख करोड़ तक का कारोबार होगा। भारत में व्यापारियों की संस्था सीआईआई कहती है कि अगले पंद्रह सालों में सिर्फ 20 रियक्टर लगाने में ही 1 लाख 20 हज़ार करोड़ रुपए इधर से उधर हो जाएगें। अब बता इतने सारे "क्यों" का मतलब समझ में आया।
अंकल सैम सपने से जाते जाते ये हिदायत दे गए कि इसे ब्लॉग में मत लिखना। सॉरी अंकल सैम !

3 टिप्‍पणियां:

AsitMishra ने कहा…

Great blog Omprakash. Keep up the gud work

अशोक कुमार ने कहा…

कहावत है की दोस्ती और दुश्मनी बराबर वालों में शोभा देती है I अमेरिका हर छेत्र में भारत से मीलों आगे है I अब भारत अपने विश्व महाशक्ति बनाने के सपने को साकार करने के लिए अपने से बहुत बड़े देश से समझौता करे तो सवाल तो उठने ही हैं I लेकिन वर्त्तमान परिस्थितियों में भारत के पास कोई दूसरा बड़ा उपाय नहीं है अतः "समझौता" तो करना ही पड़ेगा I हाँ कोई भी बड़ा आदमी, घरवाला या अमेरिका जैसा देश किसी गरीब आदमी, घर या देश को बिना अपने फायदे के सहायता नहीं करता I

totalloss ने कहा…

Interesting take...i enjoyed it...keep it up