ये विरोध है, उस अन्याय के ख़िलाफ जो अब बर्दाश्त नहीं।
विरोध उन सामंतों के खिलाफ जो अभी भी हमारी सोच में सांसे ले रहा है।
हमारे ज़ुबान बंद हैं, पर सीनों में चित्कार है।
न्याय मिले जल्दी, क्योंकि देर पहले ही बहुत हो गई है।
ठेकेदार ठेका ले और दे चुके अपना फैसला।
अब फ़ैसला लेना है उन्हें जिन्हें हमने चुना, अपने बेहतर कल के लिए।
हमने हज़ारों कदम बढ़ाए, अब एक क़दम सरकार बढ़ाए।
(निरुपमा हत्या कांड की सीबीआई जांच की मांग करते पत्रकार, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता, जिन्होंने 15 मई को दिल्ली में एक शांति मार्च निकाला।)
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