मुहावरा मुंह चिढ़ाने का सही उदाहरण शायद इससे बेहतर कोई नहीं हो सकता। महंगाई का आंकड़ा जैसे-जैसे ऊपर जा रहा है वैसे-वैसे हमारे महान अर्थशास्त्री चिदंबरम साहब और प्रधानमंत्री महोदय की फ़जीहत भी नए रिकॉर्ड बना रही है। आज मुद्रास्फीति 7.83 फीसदी तक जा पहुंची है, यानी 44 महीनों में सबसे ज्यादा। दावों पर दावे लेकिन मुद्रास्फीति 8 वें पायदान पर पहुंचने का बेताब सबको चिढ़ा रहा है। कर लो जो करना है। ये महंगाई ज्यादा ख़तरनाक दिखती है। इसलिए क्योंकि सरकार के पास करने को ज्यादा कुछ बचा नहीं है। पिछले दिनों ही रिज़र्व बैंक ने बाज़ार से पैसा हटाने के लिए अपने नगद आरक्षित अनुपात में 75 बेसिस अंक तक की बढ़त की। उम्मीद थी कि बाज़ार से 26 से 29 हज़ार करोड़ रुपयों तक की तरलता कम हो जाएगी। नतीजा लोगों के पास पैसे कम होगें तो, मांग कम होगी और महंगाई पर लगाम लगेगी। सरकार ने आपूर्ति ठीक करने के दावे किए लेकिन परिणाम दिखता नहीं। जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि महंगाई का ये सूचकांक 8 फीसदी के ऊपर जाकर रहेगा।
सरकार की इन कोशिशों को धक्का रुपए की कमज़ोरी के कारण भी लगा है। पिछले साल जहां परेशानी इस बात की थी कि रुपया ज़रुरत से ज्यादा इठला रहा था तो इस बार मामला उलटा है। चिंता का कारण पेट्रोलियम के बढ़ते दाम भी हैं। वहीं, सरकारी पेट्रोलियम कंपनियां भी बाप-बाप कर रही हैं। रुपए के कमज़ोर होने से आयात महंगा हुआ है, जिसका सीधा असर पेट्रोलियम उत्पादों पर पड़ा है। लेकिन चुनावी साल में सरकार भी बेबस बनी काग़ज काले किए जा रही है। नतीजा, सब्सिडी का बोझ सरकार पर बढ़ता जा रहा है। लग रहा है कि ये सब्सिडी का बिल जीडीपी के 5 फीसदी तक जा सकती हैं। ऐसे में एक सवाल और कि सरकार के बजटिय घाटा का क्या होगा।
महंगाई के साथ साथ एक और बात के लिए तैयार रहिए। वो है तेज़ जीडीपी रफ़्तार आपको रेंगती नज़र आ सकती है।
1 टिप्पणी:
बढ़िया विश्लेषण
एक टिप्पणी भेजें