
आज देश में कच्चे तेल के आने के बाद हमारी सरकारें कुल चार तरह के कर आम जनता से वसूलती है। आज भी जब महंगाई 8 फीसदी के आसपास मंडरा रही है, तब भी इन करों में कोई राहत नहीं है। चाहे आयात कर हो या सीमा शुल्क, उत्पाद शल्क हो या राज्यों के बिक्री कर। आज हमारे देश में पेट्रोलियम उत्पादों पर 32 फीसदी से ज्यादा उत्पाद शल्क वसूला जा रहा है, जबकि चीन में ये मात्र 5 फीसदी है तो पाकिस्तान में सिर्फ 2 फीसदी। इस बीच कई ख़बरें आ रही है, जैसे तेल कंपनियों के बढ़ते घाटे को कम करने के लिए आयकर और कॉरपरेट करों पर एक उपकर यानी सेस लगा दिया जाए। लेकिन क्या सरकार ऐसा जोखिम लेगी। पहले ही फरवरी में सरकार ने तेल के दाम बढ़ाए थे, लेकिन काफी कम। पिछले 8 महीने में कच्चे तेल की कीमतें 64 से 130 डॉलर प्रति बैरल तक जा चुकी हैं। लेकिन हमारे यहां कीमतें बढ़ी सिर्फ 3 से 4 फीसदी तक। ये राजनीति ही है जिसने कीमतें बढ़ने नहीं दिया है। लेकिन बकरे की अम्मा कब तक खै़र मनायेगी यही देखना है। कहीं ऐसा ना हो कि अंत में तेल की फिसलन से न आम जनता बच पाए न ही सरकार।
1 टिप्पणी:
jankari bhare lekh ke liye dhanyabad sath hi badhai bhi. 600 crore ka hardin ka ghata bahut jyada hota hai. sarkar der saver aam janta se hi ise vasool karegi.
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