19 दिसंबर, 2008

ख़ुशी है या ग़म

अभी गुरुवार की ही बात है। लोकसभा में आर्थिक हालत पर हो रही चर्चा का जवाब देते हुए पी.चिदंबरम ने साफ किया कि मौजूदा विकास दर 7 फीसदी रहेगी। जो अभी हाल तक साढ़े सात फीसदी तक बताई जा रही थी। ऐसे में अचानक ही उम्मीद की कई किरणें दिखने लगी हैं। पिछले 6 सफ्ताह से कम होते होते महंगाई 7 फीसदी से भी कम पर आ गई। लगातार गिर रहा रुपया भी ड़ेढ़ महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया। दूसरी तरफ शेयर बाजार भी पीछे नहीं रहा। पांच सप्ताह में बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स एक बार फिर से 10 हज़ार के आंकड़े के आसपास है। पिछले जुलाई में ही आठ आठ आंसू रुलाने वाला तेल की कीमतें पिछले चार सालों में सबसे निचले स्तर पर आ गया है। पिछले दिनों ही होम लोन में भी कमी की गई है। वहीं सरकार ने भी 30 हज़ार करोड़ से भी ज्यादा का पैकेज दिया है। एक्साईज ड्यूटी यानी उत्पाद करों में भी 4 फीसदी कमी की गई है। कारों और मोटरसाइकलों की कीमतों में भारी गिरावट देखी गई है। यानी ख़ुश होने के कई मौके़। लेकिन ज़रा रुकिए। याद रखिए कि पिछले 5 सालों में पहली बार भारत की निर्यात बढ़ने की रफ्तार निगेटिव हो गई है। पिछले अक्टूबर में निर्यात 15 फीसदी तक घट गया। अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के देशों में मंदी पैदा होने से भारत के निर्यात कारोबार पर असर अब साफ दिख रहा है। क्योंकि जीडीपी में सामानों के निर्यात की हिस्सेदारी 17 फीसदी तक है। रुपए की कीमत भी इस साल 22 फीसदी कम हुई है। सरकार का ही एक सर्वेक्षण ये बताता है कि पिछले अगस्त से अक्टूबर तक मंदी के असर ने 65 हज़ार से भी ज्यादा नौकरियां छीन ली हैं।
दूसरी तरफ सरकार को घाटे की भी चिंता है। 70 हज़ार करोड़ से भी ज्यादा का किसान कर्ज माफी, छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करना उद्योगों को लगातार कई तरह के कर छूट ने सरकारी ख़जाने पर बड़ा असर डाला है। नतीजा, राजस्व और राजकोषिय घाटा नियंत्रण से बाहर ही जा रहे हैं। यानी रास्ते में सिर्फ खुशियों के फूल ही नहीं।

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