20 अगस्त, 2009

अब किसकी बारी !

शंकर सिंह वाधेला, गोविंदाचार्य, उमा भारती, मदनलाल खुराना, कल्याण सिंह, बाबुलाल मरांडी.....जसवंत सिंह। इन सब नामों में क्या काॅमन है। यहीं कि इन्हें या तो पार्टी विद डिफरेंस ने या तो पार्टी के निकाल बाहर किया या फिर ये ख़ुद भाजपा को छोड़ चले। इस सूची में और कई नाम जोड़े जा सकते हैं, इसमें कोई शक नहीं। कई नाम इसमें वापस पार्टी में आए और फिर गए भी। जसवंत सिंह नया नाम हैं, आंखों में आंसू लिए पार्टी से निकाले जाने के बाद जब ये फौजी मीडिया से बात कर रहा था तो एक बार तो दिल भर आया। ख़ास बात जानने की क्या है, वो ये कि भाजपा को ये वरदान मिला है कि इस पार्टी से जो भी बाहर जाएगा या भेजा जाएगा वो ज़िंदा नहीं रहेगा...मतलब राजनीतिक तौर पर वो या तो हाशिए पर होगा या ख़त्म हो जाएगा। लेकिन, भाजपा को शाप ये है कि वो अपने पैर पर कुल्हाड़ी ज़रुर चालाएगा...और एक एक करके उसके महारथी गिरते जाएगें, नतीजा भाजपा गर्त और गर्त में गिरती चली जाएगी। मेरी नज़र तो इस पर है कि अगला नंबर किसका है। राजस्थान में वसुंधरा राजे ने विरोध का बिगुल बजा दिया है। राजस्थान में घमासान जारी है। जिन्ना की बात किए बगैर तो ये आलेख अधूरा है। जिन्ना का जिन्न पता नहीं उसी पार्टी को लपेटे में क्यों ले रहा है जो उसकी सबसे बड़ी विरोधी रही है। इसने न तो आडवाणी को छोड़ा और न अब जसवंत को। लेकिन, लाॅजिक की बात करें तो मान लें कि जसवंत ने जिन्ना को महापुरुष बताया तो उसके लिए 600 से ज्यादा पन्नों की दलील भी दी। लेकिन, आडवाणी ने तो सब बातें हवा हवाई की। लेकिन, किसको ज्यादा सज़ा मिली। एक आज भी पार्टी में शीर्ष पर विराजमान है वहीं दूसरा भाजपा का रावण घोषित हो चुका है। आडवाणी ने तो न सिर्फ पार्टी को बदनाम किया बल्की पार्टी कई बार हरवाया है। पार्टी को कन्फ्यूज़ भी किया है। पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती आज यही है कि वो आरएसएस की लाईन पर चलना चाहती है कि मध्य मार्ग अपनाने वाली पार्टी है। इस कन्फ्यूजन के सबसे बड़े जिम्मेदार आडवाणी ही हैं। इसकी सज़ा उन्हें तो अभी तक नहीं मिली लेकिन पार्टी ज़रुर भुगत रही है।

2 टिप्‍पणियां:

चन्दन कुमार ने कहा…

तभी तो आज बीजेपी का ये हाल है, दो धारे पर चलने वाली और कथना करनी में फर्क करना काफी मंहगा पड़ता ही, सबसे बड़ी खामी ये है कि तमाम दिग्गज नेताओं को बाहर का राश्ता और बेकार निकम्मे और बिना जनाधार वाले नेता लॉलीपप खा रहे हैं

प्रत्युष खरे ने कहा…

वाकई बीजेपी अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है ताज्जुब की बात है कि इससे उबरने की कोशिश भी नही हो रही, पार्टी जिस विचारधारा और अनुशासन की बात करती है उसकी तो ऐसी की तैसी हो गई है ..