मुस्लिम लीग के एक सम्मेलन में जिन्ना ने कहा...
...ज्यादातर ये पाया गया है कि उनके (हिंदुओं के) जो नायक हैं वे मुसलमानों के दुश्मन हैं...ऐसी दो कौमों को, जिनमें से एक अल्पसंख्यक है और दूसरा बहुसंख्यक, एक देश में बांध देने से असंतोष बढ़ेगा और उस देश के लिए बनाई जाने वाली सरकार का तानाबाना अंतत: टूट जाएगा।
[ अगस्त, 1944]
जिन्ना ने मुस्लिम छात्रों को संबोधित करते हुए कहा...
...पाकिस्तान बन जाने से हिंदू मुसलमान खुश होंगे, क्योंकि ये उनके हित में यहीं ठीक रहेगा। वे कभी भी किसी को भी, चाहे वह अफगान हो या पठान मनमानी नहीं करने देंगे, क्योंकि भारत भारतीयों के लिए है।
[11 अगस्त, 1947]
जिन्ना ने कहा...
...यदि पाकिस्तान विभिन्न देशों के अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अपनी कोई जगह बनाना चाहता है तो उसे संप्रदाय और मज़हब से ऊपर उठना होगा। आप आज़ाद हैं, आप अपने मंदिरों में जाने के लिए आज़ाद हैं। आप अपनी मस्ज़िदों या दूसरे पूजा स्थलों पर जाने को आज़ाद हैं। आप किसी भी मज़हब, जाति, नस्ल से ताल्लुक रखते हैं, सरकार के कामकाज से उसका कोई सरोकार नहीं होगा।
एक बार गोपाल कृष्ण गोखले ने जिन्ना के बारे में कहा...
...वे सच्चे गुणों से बने हैं और तमाम सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों से मुक्त हैं, यह उन्हें हिंदू-मुस्लिम एकता का सबसे अच्छा राजदूत बनाता है।
.......इन बयानों के ज़रिए मैं कोई विश्लेषण नहीं कर रहा। बल्कि, बहस को समझने की कोशिश कर रहा हूं और सबसे पूछ रहा हूं कि जो अस्पष्टता ये बयान पेश करते हैं वही क्या समस्या की जड़ है। जिन्ना सांप्रदायिक थे या धर्मनिरपेक्ष या कुछ और...आप क्या कहते हैं।
(जिन्ना के ऊपर लिखे बयान मैंने अलग अलग पत्रिकाओं से लिए हैं।)
2 टिप्पणियां:
जिन्ना जो भी थे आप और हमारी तरह confused नहीं थे |
जिन्ना जो भी थे आप और हमारी तरह confused नहीं थे | उनके विचार जैसे भी थे ...... पर सच तो ये है की वो एक मुस्लिम देश के रास्त्र-पिता है जहा .......... हिन्दुओ की जनसँख्या पिछले ६० वर्षो में २४ % से ४ % हुई है और जिनकी स्तिथि दयनीय है | उसका उल्टा इंडिया में है .......... और जहा हमारे नेता अपने काम को न करने का बहाना इस तरह के मुद्दे उठा के करते है
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