08 दिसंबर, 2007

20 करोड़ भूखे !



पिछले 23 नवंबर को लोकसभा में एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव आया कि आख़िर क्यों ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वालों को जो गेहूं मिल रहा है, वो इतना ख़राब है कि जानवरों तक को न खिलाया जा सके। ये प्रस्ताव उन ख़बरों के मद्देनज़र आया जिसमें कहा गया था कि देश के कई इलाकों में बीपीएल परिवारों को जो अनाज ख़ासकर गेहूं मिल रहा है वो काफी ख़राब हालत में है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि ये वो गेंहू है जिसे काफी ऊंची कीमत पर विदेशों से आयात किया गया था। पिछले वित्तिय वर्ष में सरकार ने लगभग 55 लाख टन गेहूं का आयात किया था। इस साल भी सरकार ने देश के बाहर से लगभग 13 लाख टन गेंहू आयात का लक्ष्य रखा है जिसमें लगातार गेहूं आ भी रहा है। यहां दो सवाल है कि आख़िर हमें अनाज आयात की ज़रुरत क्यों पड़ रही है जबकि देश में अनाज उत्पादन अपने रिकॉर्ड स्तर पर है। साल 2006-07 के दौरान हमारे देश में खाद्यानों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ। जो 216 मिलियन टन से भी ज्यादा था।
सरकार का कहना है कि अनाज आयात का उद्देश्य पीडीएस के तहत लोगों तक सस्ता अनाज पहुंचाने के साथ साथ ऐसा बफर स्टॉक बनाना भी है जो आपात हालत में काम आ सके। जन वितरण प्रणाली यानी पीडीएस जो गरीबों को भूखमरी से बचाने के लिए शुरु किया गया था वो आज भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। नेशनल काउंसिल फॉर अपलायड इकॉनोमिक रिसर्च का एक सर्वे कहता है कि पीडीएस कई मायनों में असंतुलित भी है। सर्वे कहता है कि पीडीएस की 40 फीसदी सक्रियता शहरों तक ही सीमित है।
चिंता की बात ये है कि सरकार गेहूं का भंडारण नहीं कर पा रही है। हालांकि ये अपने आप में बहस का मुद्दा है कि आख़िर इसके पीछे कारण क्या हैं। साल 2006-07 के रबी मौसम के दौरान 5.6 मिलियन टन कम का भंडारण कर पाई।
अंत में सवाल यहीं रह जाता है कि वो देश जहां 20 हज़ार पार करने को सेंसेक्स बेताब है। वहीं भूखमरी और खाद्य सुरक्षा को लेकर गंभीर बहस होती नहीं दिखती।
भूखमरी के शिकार देशों की सूची में भारत 94 वें स्थान पर है। ग़ौर करने वाली बात है कि हम इथियोपिया जैसे देशों से भी पीछे हैं। यहां तक कि ज़िम्बाब्वे, बोलिविया और पाकिस्तान जैसे देशों के लोगों को भारत से ज्यादा खाद्य सुरक्षा हासिल हैं।

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