04 जून, 2008

जब तलक रिश्वत न ले हम दाल गल सकती नहीं, नाव तनख़्वाह की पानी में तो चल सकती नहीं।


आज से लगभग 60 साल पहले जोश मलीहाबादी का लिखा ये शेर उनके पहले भी लागू होता था और आज भी हर्फ-ब-हर्फ लागू होता है। ये सच्ची कहानी है कि एक बाप उस दिन बहुत खु़श हुआ। जब उसके दो बेटों में से छोटा बेटा सिविल इंजीनियर बना और टेबल के नीचे के कारोबार से कुछ ही सालों में खू़ब पैसे पीट डाले। खपरैल, दो मंज़िला इमारत में तबदील हो गई। गांव भर में उसने ऐलान किया कि "ये है मेरा लायक बेटा"। अगले दिन ही बाबूजी मोटरसाइकिल के शहर निकले। गढ़ढ़ों के बीच सड़क ढ़ूंढते-ढ़ूंढते हीरोहोंडा पस्त हो गई। उसने हाई-वे पर ऐलान कि "सब साले चोर हैं, सड़क बनाने के नाम पर इंजीनियर से लेकर ठेकेदार तक जनता को धोखा दे रहे हैं। पता नहीं इस देश का क्या होगा।"
कौटिल्य ने हज़ारों साल पहले अपने अर्थशास्त्र में लिखा था कि शासन में भ्रष्टाचार 40 तरीके से अपनी जगह बनाता है। कमाल की बात है कि आज भी उनकी बात जस की तस है। तरीके बढ़ गए हों तो कह नहीं सकते। अभी इस पर शोध करना शेष है। एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था भ्रष्टाचार विरोधी उपायों के मामले में हमें 10 में से सिर्फ 3.5 (साढ़े तीन) नंबर देती है। लेकिन ख़ुश होने वाली बात ये है कि भ्रष्टाचार की इस शर्माने वाली ऊंचाई पर अकेले हम हीं नहीं खड़े बल्कि चीन, ब्राज़ील जैसे देश भी हैं। विकसित अर्थव्यवस्था में काफी ऊपर मौजूद जापान भी सबसे भ्रष्ट देशों में गिना जाता है। हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में तो कई प्रधानमंत्रियों का नाम ही भ्रष्टाचार के आरोपों से साथ लिया जाता है।
मैं कहना चाह रहा था कि ये हमाम ऐसा है जहां सभी ये कह कर भी पल्ला नहीं झाड़ सकते कि ये अंदर की बात है। एक आकलन कहता है कि अगर भ्रष्टचार 1 फीसदी कम हो जाए तो विकास दर 1.5 फीसदी तक बढ़ सकती है। क्योंकि इसकी सबसे ज्यादा मार ग़रीबों पर पड़ती है। एक सर्वेक्षण तो ये भी कहता है कि ग़रीबों की 25 फीसदी कमाई घूस देने में ही चली जाती है। लेकिन ये चर्चा ही बेमानी है क्योंकि लगता है कि ये मुद्दा सुर्खियां तो बन जाती हैं, लेकिन हमें परेशान नहीं करती। हम इसे ठहराने लगे हैं। जयललिता से लेकर लालू तक को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि भ्रष्टाचारी होने का आरोप वोट कटने का कारण नहीं बनता। एक बदलाव ज़रुर आया है, और वो है आज अपना उल्लू सीधा करने के लिए सूचना के अधिकार का इस्तेमाल ख़ूब हो रहा है। अब तो इसके लिए बजाप्ता ऐजेंटी भी होने लगी है। मैं इधर सोच रहा हूं कि जब ये पूरी दुनिया में फैला है तो क्या हमें इस पर सिर खपाने की ज़रुरत है। ये तो आप ही बताएं ?

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

जब तलक रिश्वत न ले हम दाल गल सकती नहीं,
नाव तनख़्वाह की पानी में तो चल सकती नहीं।

-आज भी एकदम वेलिड.