22 मार्च, 2010

अनोखे भगत !

आज जब भगत सिंह की शहादत पर अपने चैनल के लिए एक स्टोरी लिखते वक्त किसी ने मुझसे पूछा, कि भगत सिंह के साथ तो दो और क्रांतिकारी सुखदेव और राजगुरु भी फांसी चढ़े थे। तो फिर भगत सिंह को ही ज्यादा तवज्जो क्यों। भगत सिंह को ज्यादा तवज्जो क्यों ? सवाल न तो नया है न ही अनोखा। लेकिन, भगत अनोखे हैं। फांसी पर चढ़ने के कुछ मिनट पहले तक वो लेनिन को पढ़ रहे थे। अंतिम इच्छा थी कि जेल की ही एक महिला सफाई कर्मचारी के हाथ से खाना खाना। लेकिन, अनोखापन क्या है। भगत ने २४ साल के भी कम उम्र में इतना पढ़ा कि तीन बार पीएचडी हो जाए। उससे ज्यादा उन्होंने समझा। फांसी के तीन दिन पहले उन्होंने चिठ्ठी लिखी कि तीनों क्रांतिकारियों पर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी ठहराकर गोली मार दी जाए, न कि अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी साउंड्रस की हत्या के जुर्म में सज़ा दी जाए। मरने का ये जुनून क्या उन्हें अनोखा बनाता है, शायद ये भी नहीं ? उन्हें अनोखा बनाता है उनके विचार। कोई भी आंदोलन या कोई भी संघर्ष तब तक अधूरा है जब तक कि यथास्थिति को ध्वस्त करते हुए नवनिर्माण की नींव न रखी जाए। नवनिर्माण का ये नक्शा भगत सिंह के पास था। ऐसा नहीं कि वो लेनिन या मार्क्सवादियों के रास्ते पर ही भारत का भविष्य देखते हैं, लेकिन समाजवाद की अवधारणा के समर्थक तो वो थे ही। आज जो वामपंथ हम अपने देश में देखते हैं वो भारतीय परिवेश में बिलकुल अप्रासंगिक है। भारतीय मानस अर्थ से ज्यादा एक ऐसे आध्यात्मिक संसार की तरफ देखता रहता है जहां ऊंच नीच, जात-पात, राजा रंक सामाजिक व्यवस्था नहीं बल्कि किसी और की बनाई व्यवस्था है जिसे हमें नहीं छेड़ना चाहिए। मामला पूरी तरह आर्थिक ताने बाने में ही नहीं गुंथा। भगत सिंह ये समझ चुके थे। वो यूंही नहीं घोषणा करते ही कि -- मैं नास्तिक हूं--वो ये भी बताते हैं कि "Why I am Atheist". भगत चाहते थे कि विद्धार्थियों, मज़दूरों और किसानों से सीधे संवाद स्थापित करें, लेकिन उन्हें इसका ज्यादा मौका नहीं मिल पाया। लेकिन, बात तो पहुंचानी थी सो उन्होंने सोच समझ कर तय किया कि अपने आप को एक उदाहरण बनाकर देश के सामने रख दो। और जाते जाते अपनी बात उन्होंने न सिर्फ अपनी लेखनी के ज़रिए कही बल्कि अदालती कार्यवाही में उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के दलीलों की धज्जियां उड़ा दीं। हालत ये हुई कि अंग्रेज भगत सिंह को फांसी देने में भी डरने लगे, इसीलिए उन्हें चोरी छिपे फांसी पर लटकाया गया और जलाया भी गया। भगत इसीलिए अनोखे हैं। इंक़लाब ज़िंदाबाद।

4 टिप्‍पणियां:

कृष्ण मुरारी प्रसाद ने कहा…

लोगों का नजरिया अलग-अलग होने का कारण यह होता है कि सबकी आँखों में एक जैसा पानी नहीं होता..........
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विश्व जल दिवस....नंगा नहायेगा क्या...और निचोड़ेगा क्या ?
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_22.html

दृष्टिकोण ने कहा…

भगतसिंह को सबसे अलग बनाती है वह विचारधारा जिसे मार्क्सवाद कहा जाता है। मार्क्सवाद को आज के वामपंथियों की नज़र से देखने का कोई अर्थ नहीं है, वह अपने आप में एक विज्ञान है और सभी विज्ञानों के सभी के रूप में काम करता है।

दृष्टिकोण
www,drishtikon2009.blogspot.com

समयचक्र ने कहा…

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगत सिह को पोस्ट में याद करने लिए आभार बहुत बढ़िया प्रस्तुति .....

Dudhwa Live ने कहा…

सुन्दर लेखन जो मिजाज में तब्दीली लाने की बात करता है...!!