ये कोई भी समझ सकता है कि थोक भाव हमेशा ख़ुदरा से कम ही होता है। 11.05 फीसदी पर पहुंची महंगाई का आंकड़ा हमें और सरकार दोनों को डरा रहा है। लेकिन 11.05 फीसदी का सच क्या है ? एक आर्थिक अख़बार ने एक विशलेषण छापा कि महंगाई 11 फीसदी नहीं 25 फीसदी है। क्यों उड़ गए ना होश। जिस मद्रास्फीति की बात हो रही हैं। आज 30-35 करोड़ का मध्यवर्ग अपना 60 फीसदी ख़र्च सेवा क्षेत्र पर करता है। जैसे टेलीफोन या मोबाईल का बिल, स्कूल या कॉलेज की फीस, ईलाज पर ख़र्च या यात्राओं पर होने वाला ख़र्च। आपका बता दूं कि ये सारे ख़र्चे मुद्रास्फीति यानी महंगाई के निर्धारण करने में गिने ही नहीं जाते। यानी थोक मूल्य सूचकांक में ये खर्चे शामिल नहीं हैं। ग़रीब लोग अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा खाने पर खर्च करते हैं लेकिन थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित हमारी मुद्रास्फीति में खाने पीने की चीज़ों की भागीदारी काफी कम है। प्राथमिक चीज़ों की भागीदार वैसे तो 22 फीसदी है लेकिन उसमें भी फूड आर्टिकल की भागीदारी नाम मात्र की। जो लोग महंगाई का मुक़ाबला निवेश और बचत से करना चाहते हैं, तलवार उन भी लटक रही है। या कहें कि तलवार गर्दन पर गिर चुकी है। सामान्य समझ भी ये कहती है कि 10 फीसदी से ज्यादा महंगाई होने पर अलग अलग योजनाओं में लगे पैसे पर होने वाला फायदा न के बराबर होता है। यानी 11.05 फीसदी की सच्चाई बैंकों में जमा आपकी मेहनत की कमाई पर भी नज़र डाल चुका है। यानी सावधान!
3 टिप्पणियां:
aapne bahut achchii baat uthai hai, sahi baat yahi hai ki CPI jisse tay hota hai usme duniya bhar ki ulti seedhi cheeje hain jisse aam aadmi ka koi vaasta nahi hota
ओमप्रकाश जी, सही मुद्दा उठाया है आपने। असल में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति औद्योगिक उपभोग की महंगाई दर्शाती है। और, सरकार इससे निपटने के उपायों से उद्योग की रक्षा करती है। अगर आम आदमी की चिंता की होती तो सरकार ब्याज दरें बढ़ाकर कर्ज को महंगा न करती, पहले से घर की ईएमआई के नीचे दबे आम लोगों पर बोझ और न बढ़ाया जाता।
Boss i wasn't knowing that Consumer Index inflation is pegged at 25 %... gud piece...
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