12 मार्च, 2009

Slumdog पर जागरुकता चाहिए...

पंचशील की लालबत्ती पर जैसे ही मैंने अपनी बाइक को ब्रेक लगाई कई स्लमिए बड़ी गाड़ियों जैसे इनोवा, टोयोटा पर लूझ पड़े। साफ कर दूं कि गंदे संदे छोटे बच्चों को एक एक रुपए मांगते देख अब सीधे स्लमडॉग मिलिनेयर की ही याद आती है। इसलिए इनको स्लमिए कह दिया। इन स्लमियों को देखकर बड़ा अफसोस भी हुआ। अरे, कहां तो स्लमडॉग को Oscar मिल गया, एक नहीं दो नहीं वो भी आठ, और ये नामुराद अब भी एक-एक रुपया मांग रहे हैं। अवेयरनेस की कमी है क्या करें। ख़ैर, लालबत्ती हरी हुई और आगे बढ़े, ऑफिस पहुंचा। Boos से मैने ऐसे ही पूछ लिया, सर आपने Slumdog..देखी क्या। उन्होंने बड़ा दार्शनिक जवाब दिया...हां देखी तो है लेकिन अलग अलग, स्लम अलग, डॉग अलग और मिलिनियर को अलग। क्या दर्शन है। लेकिन ये अलग अलग हम पहले भी देखते रहे हैं, पर डैनी बाॅयल ने इन सबको एक साथ कर दिया। दर्शन छोड़ो यथार्थ को जानों...इन स्लमियों की आदत जाएगी कब। क्यों नहीं ये भी कोई डायेरेक्टर को ढूंढते...विदेशी न सही देसी ही सही। या कोई अवेयरनेस कैंपेन चलाया जाए, कि एक एक रुपया छोड़ो और किसी रियलिटी शो पर नज़र रखो। मोबाइल तैयार रखो। दनादन एसएमएस करते रहो...किसी न किसी दिन कोई लतिका मिल ही जाएगी...मेरा मतलब है लतिका के साथ तो करोड़ों तो आएगें ही।

1 टिप्पणी:

रात का अंत ने कहा…

मुझे नहीं लगता कि ये हमारे लिए कोई खास उपलब्धि है बेशक बॉलिबुड ने एक मुकाम हासिल कर लिया हो लेकिन अजहर का क्या या उन बच्चों का जो आज भी उसी स्लम में डॉग बने हुए हैं उनकी तो सोचिए..ब्यॉल साहब जो वादे करके गए ऑस्कर भी पा लिया लेकिन वादों को पूरा करने वापस नहीं आए मेरी उस दिन उन बच्चों से बात हुई थी वो काफी आशान्वित थे कि डॉयरेक्टर अंकल लौट कर आएंगे लेकिन अब तक तो लौट कर नहीं आए देखना है शायद दूसरी बार ऑस्कर जीतने की चाहत उन्हे खींच लाए